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बुरहानपुर में जंगल पर कब्जे की खबरों के बाद याद आई वरिष्ठ IFS को अपनी रिपोर्ट, दो साल पहले सौंपी थी विभाग को

जंगल को जंगल महकले के अधिकारी-कर्मचारी पैसा लेकर खत्म करने पर उतारू हैं। बुरहानपुर में जिस तरह जंगल अतिक्रमण माफिया काम कर रहा है उसके पीछे वामपंथी विचारधारा वाले तथाकथित सोशल वर्कर का हाथ है। वन अमले की मिलीभगत का खुलासा एक वरिष्ठ आईएफएफ अधिकारी ने किया था और दो साल पहले राज्य शासन को रिपोर्ट बनाकर भेजी थी। यह रिपोर्ट मंत्रालय के फाइलों के ढेर में दबी पड़ी है और बुरहानपुर में वन क्षेत्र में अतिक्रमण की खबरों से इस अधिकारी को अपनी रिपोर्ट याद आई जो उन्होंने नाम नहीं छापने की शर्त पर हमसे शेयर की।
बुरहानपुर में अतिक्रमण माफिया के पीछे वामपंथी विचारधारा वाले कथित सोशल वर्कर का हाथ है। वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी भी पैसा लेकर अतिक्रमण कराते आ रहे हैं। स्थानीय लोगों की बदौलत ही बुरहानपुर में 1300 वर्ग किलोमीटर जंगल बचा है. बुरहानपुर में स्थानीय ग्रामीणों को आर्थिक एवं कानूनी मदद देख कर ही अतिक्रमणकारियों को रोका जा सकता है। यह अतिक्रमणकारी खरगौन-बड़वाह जिले से संबंधित हैं।
फील्ड के दौरे-स्थानीय लोगों से बातचीत के बाद तैयार की रिपोर्ट
1988 बैच के आईएफएस अधिकारी ने अपनी जो रिपोर्ट तैयार की थी, वह कई रेंज का दौरा और स्थानीय लोगों की बातचीत पर आधारित है। अधिकारी ने घाघराला और अन्य संवेदनशील रेंज का दौरा करने और स्थानीय लोगों से बातचीत करते हुए तैयार की थी। अपनी रिपोर्ट में वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी ने उल्लेख किया है कि खरगोन और बड़वाह जिले के 50 से अधिक आदिवासी परिवारों द्वारा संगठित होकर अतिक्रमण किया जा रहा है। अतिक्रमण कारी संगठित होकर एक बड़ी रकम जुटाते है और वे कब्जे के लिए बड़ी राशि फॉरेस्ट अधिकारियों-कर्मचारियों को देते है।
वन समिति अध्यक्ष ने बताया था कि नेता-अफसरों की सांठगांठ
रिपोर्ट में इसका जिक्र घाघराला संयुक्त वन समिति के अध्यक्ष कडू पटेल ( 3 महीने पहले ही निधन हुआ है) के बयान को आधार बनाकर किया है। स्वर्गीय कडू पटेल ने ही रिपोर्ट कर रहे अफसर को बताया था कि जेएनयू का वायरस अतिक्रमणकारियों को सपोर्ट करता है। रिपोर्ट में यह भी दावा है कि पटेल ने खुलकर कहा था कि स्थानीय राजनेता और प्रशासन के आला अफसर भी मदद करते हैं। घाघराला वन समिति के अध्यक्ष के नाते स्वर्गीय पटेल ने अतिक्रमणकारियों के खिलाफ हाईकोर्ट तक लड़ाई लड़ी थी। स्थानीय प्रशासन पर दबाव बनाकर अतिक्रमणकारियों पर अंकुश लगाया था. वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में साफ तौर पर लिखा है कि फारेस्ट के लोग ही पैसा लेकर कब्जा करवा रहे हैं। यहां यह उल्लेख करना उचित होगा कि बुरहानपुर में जमीन की कीमत ₹20 लाख हेक्टेयर है।
अतिक्रमण से निपटने के लिए सुझाव
सीनियर आईएफएस अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में समस्या के निराकरण के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भी अपनी रिपोर्ट में दिए हैं. यह सुझाव मंत्रालय में धूल खा रही है।
- स्थानीय राजनेताओं को लोकल आदिवासियों को मोटिवेट करना चाहिए. अतिक्रमणकारियों के खिलाफ विशेष जन जागरण अभियान किया जाना चाहिए।
- संयुक्त वन समितियों को संगठित कर लगातार सम्मेलन होना चाहिए. समितियों को प्रशासनिक कानूनी और आर्थिक मदद भी करना चाहिए।
- प्रशासनिक रूप से दक्ष अधिकारियों की पोस्टिंग होनी चाहिए. इसके साथ ही मैदानी अमले को भी आधुनिक संसाधन उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
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