मध्य प्रदेश में कुछ दफ्तर ऐसे हैं जहां बड़े बिजनेस ग्रुप की तरह 500-700 करोड़ रुपए का कारोबार होता है लेकिन वहां ऐसे अफसरों का दबदबा होता है जो खुद फाइल तैयार करते हैं और खुद ही उस पर फैसला करने वाले होते हैं। ऐसा ही एक ऑफिस है मध्य प्रदेश पाठ्य पुस्तक निगम। आईए आपको बताते हैं इस दफ्तर में कितने अधिकारी हैं जिनके आगे-पीछे की कुर्सियां जब उन्होंने चाहा तब सरकार ने भरी हैं।
मध्य प्रदेश पाठ्य पुस्तक निगम हर साल करीब साढ़े छह करोड़ स्कूल किताबें छापता है जिसमें पेपर खरीदी से लेकर प्रिटिंग तक के काम में कई सुराख हैं। यहां के प्रबंध संचालक विनय निगम हैं जो पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के काफी करीबी हैं। वे यहां 2019 में महाप्रबंधक के रूप में पदस्थ किए थे और कुछ समय बाद ही यहां प्रबंध संचालक की कुर्सी खाली हो गई तो वह जब निगम प्रबंध संचालक नहीं बन गए तब तक खाली रही। इसके बाद जब वे प्रबंध संचालक बन गए तो मुख्य महाप्रबंधक पद पर भी वे ही हैं। चार साल से निगम एमडी नहीं तो जीएम के रूप में पूरी जिम्मेदारी संभाल रहे थे और अब एमडी हैं तो सीजीएम खाली हैं और दोनों पद उनके पास हैं।
बिना एकाउंट ऑफिसर जीएम फायनेंस
पाठ्य पुस्तक निगम में वित्त विभाग की एक अधिकारी अंजू सिंह महाप्रबंधक के रूप में काम करती हैं। यहां करीब दो साल से एकाउंट ऑफिसर नहीं है। बताते हैं कि अजूं सिंह एकाउंट ऑफिसर कम जीएम फायनेंस की भूमिका निभाती हैं।
जीएम-डीजीएम दोनों की भूमिका में त्यागी
पाठ्य पुस्तक निगम में संजीव त्यागी हैं जिनके बारे में दिलचस्प बात है कि वे महाप्रबंधक और उप महाप्रबंधक दो भूमिका में हैं। जब वे प्रिटिंग का काम देखते हैं तो महाप्रबंधक होते हैं और जब कागज-वितरण का काम देखते हैं तो उप महाप्रबंधक हो जाते हैं।
बाथरे के दो रूप असिस्टेंट मैनेजर और डिप्टी मैनेजर
संजीव त्यागी के असिस्टेंट राजेंद्र बाथरे भी अपने बॉस की तरह दो भूमिका निभाते हैं। जब वे कागज की कोई फाइल कर रहे होते हैं तो सहायक प्रबंधक यानी असिस्टेंट मैनेजर बन जाते हैं और जब वितरण की हैसियत से कुर्सी संभालते हैं तो डिप्टी मैनेजर बन जाते हैं।
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