ठहरे हुए दरिया में मुझको रवानी चाहिए, हो वतन पर जो फिदा वो ज़िन्दगानी चाहिए

मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा ज़िलेवार गतिविधि “सिलसिला” के अंतर्गत धार में “साहित्यिक गोष्ठी” आयोजित। आयोजित साहित्यिक गोष्ठी में  शायरों और वक्ताओं ने शिरकत की।

देश की आजादी के 75 वर्ष के अवसर  अमृत महोत्सव के अंतर्गत मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग द्वारा प्रदेश में संभागीय मुख्यालयों पर नवोदित रचनाकारों पर आधारित “तलाशे जौहर” कार्यक्रम सम्पन्न होने के बाद अब ज़िला मुख्यालयों पर स्थापित एवं वरिष्ठ रचनाकारों के लिए “सिलसिला” के अंतर्गत कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। इस कड़ी  का चौथा कार्यक्रम धार में 25 अगस्त को रात 8 बजे धार में “शेरी व अदबी नशिस्त” का आयोजन ज़िला समन्वयक अनिता मुकाती के सहयोग से किया गया। 
अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी ने कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि उर्दू अकादमी द्वारा अपने ज़िला समन्वयकों के माध्यम से प्रदेश के सभी ज़िलों में आज़ादी का अमृत महोत्सव के तहत “सिलसिला” के अन्तर्गत व्याख्यान, विमर्श व काव्य गोष्ठियाँ आयोजित की जा रही हैं। ज़िला मुख्यालयों पर आयोजित होने वाली गोष्ठियों में सम्बंधित ज़िलों के अन्तर्गत आने वाले गाँवों, तहसीलों, बस्तियों इत्यादि के ऐसे रचनाकारों को आमंत्रित किया जा रहा है जिन्हें अभी तक अकादमी के कार्यक्रमों में प्रस्तुति का अवसर नहीं मिला है अथवा कम मिला है।
धार ज़िले की समन्वयक अनिता मुकाती ने बताया कि धार में आयोजित साहित्यिक गोष्ठी में  शायरों और वक्ताओं ने शिरकत की। कार्यक्रम की अध्यक्षता केंद्रीय विद्यालय के प्राचार्य साहित्यकार और संगीतज्ञ आनंद अय्यर ने की एवं मुख्य अतिथि के रूप में उत्कृष्ट विद्यालय के पूर्व प्राचार्य श्रीकांत द्विवेदी मंच पर उपस्थित रहे। जिन शायरों ने अपना कलाम पेश किया उनके नाम और अशआर इस प्रकार हैं।  निसार अहमद धार, उनके रुख़सार की झलक है निसार,लोग जिसको सहर समझते हैं।।
वल्लभ विजयवर्गीय धार, है यकीं लौट कर आओगे फिर ,इसलिए हमने मेले सजाये नहीं।।
मोइन जाफरी अमझेरा, चराग़े मोहब्बत जलाने की खातिर ,बहुत दुश्मनी ली हवाओं से मैनें।।
अनिता मुकाती धार ठहरे हुए दरिया में मुझको रवानी चाहिए ।हो वतन पर जो फिदा वो ज़िन्दगानी चाहिए।।
क़मर साक़ी धार, मैंने एक दिन सब्र इतना कर लिया ,मेरे सब अश्कों ने पर्दा लिया।।
नज़र धारवी धार, ज़ुल्म की आग में जलने लगा वतन मेरा,प्रेम बरसा के अब आग बुझा दे कोई।।
मुशताक राही नालछा, हाल ए दिन अपना सुनाये कैसे,ज़ख्म सीने के दिखायें कैसे ।।
असरार धारवी मनावर उसने देखा कुछ इस अदा से मुझे,मसअला ज़िन्दगी का भूल गया ।।
शेरी नशिस्त का संचालन अनिता मुकाती  द्वारा किया गया।कार्यक्रम के अंत में एडवोकेट निसार अहमद ने सभी का आभार व्यक्त किया।

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