जैविक खेती से किसान चित्तरंजन को मिली अलग पहचान

मध्यप्रदेश का बुंदेलखण्ड क्षेत्र मानसून की अनिश्चितता की वजह से कृषि के मामले में पिछड़ा माना जाता हैं। यह क्षेत्र लम्बे समय से सूखे की मार भी झेल रहा है। इन सब स्थितियों के बावजूद छतरपुर जिले के ग्राम निवारी के किसान चित्तरंजन चौरसिया ने जैविक खेती में श्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए अन्य किसानों के लिये मिसाल कायम की हैं।

किसान-कल्याण एवं कृषि विकास विभाग की सलाह पर चित्तरंजन चौरसिया ने अनुदान राशि से अपने खेत पर केचुआ खाद निर्माण की यूनिट तैयार की और पशुपालन भी प्रारंभ किया। चित्तरंजन को यूनिट से तैयार जैविक खाद से फसल उत्पादन में आश्चर्यजनक परिणाम मिले। केवल खेती की लागत ही कम नहीं हुई बल्कि मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ी। अब चित्तरंजन अपने यहाँ तैयार होने वाली 200 क्विंटल खाद की बिक्री से प्रति माह 10 हजार से 15 हजार रूपये लाभ कमा रहे हैं। उन्हें गाय और भैंसों से रोजाना 25 से 30 लीटर दूध भी मिल रहा है। दूध के घरेलू उपयोग के बाद बाजार में भी दूध की बिक्री कर रहे हैं। इसके अलावा वे अपने खेत में जैविक सब्जी भी उगा रहे हैं। चित्तरंजन के खेत की जैविक सब्जी की माँग आसपास के क्षेत्र में हमेशा बनी रहती है।चित्तरंजन के खेत को कृषि विकास विभाग ने मुख्यमंत्री खेत तीर्थ योजना में शामिल किया है। उनके खेत का जिले के विभिन्न विकासखण्डों के करीब एक हजार किसान भ्रमण कर चुके हैं। खेती के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए चित्तरंजन को गुजरात सरकार की ओर से सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार और रामजी महाजन पिछड़ा वर्ग सेवा पुरस्कार भी मिला है। कलेक्टर छतरपुर और कृषि विज्ञान केन्द्र नौगांव द्वारा भी उन्हें प्रगतिशील किसान के रूप में सम्मानित किया जा चुका है।मध्यप्रदेश में जैविक कृषिमध्यप्रदेश के 313 विकासखंडों में 1550 से अधिक ग्रामों में जैविक खेती को अपनाया गया है। एसोचैम (ASSOCHAM) द्वारा मध्यप्रदेश में किये गये सर्वे की रिपोर्ट में जैविक कृषि से आने वाले वर्षों में 23 हजार करोड़ रुपये का संपदा संग्रहण, 600 करोड़ रुपये के निर्यात की संभावनाएँ तथा 60 लाख नवीन रोजगार सृजन के अवसर को रेखांकित किया गया है। सर्वे में बताया गया है कि देश में जैविक कृषि उत्पाद में अग्रणी मध्यप्रदेश ने देश को वैश्विक कृषि व्यवसाय में 2.5 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिये सक्षम बनाया है। पहले वैश्विक जैविक कृषि व्यवसाय में देश की हिस्सेदारी एक प्रतिशत से भी कम थी।

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