मध्य प्रदेश में जेल कर्मचारियों के पीएफ खाते से राशि निकाले जाने वाले घोटाले में जेल ही नहीं अन्य विभागों की लापरवाही व मिलीभगत की संभावना बढ़ती जा रही है। अब तक कलेक्टर-जेल की जांच रिपोर्ट आ चुकी है और कोषालय की कमेटी जांच कर रही है जिसकी रिपोर्ट दो दिन में आ जाएगी। पता चला है कि यहां सबसे बड़ी लापरवाही एक व्यक्ति के पास एकाउंट क्रिएट करने, वेरीफाई करने और अप्रूव्ड करने पासवर्ड की है जिसमें कोषालय की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। आईए जानें कहां-कहां गड़बड़ी का संदेह।
उज्जैन सेंट्रल जेल में कर्मचारियों के पीएफ खातों में से राशि निकाले जाने के घोटाले में अब तक कलेक्टर उज्जैन और जेल मुख्यालय के डीआईजी की जांच रिपोर्ट आ चुकी है और कोषालय की जांच कमेटी अभी तथ्यों को इनवेस्टिगेट कर रही है। जांच कमेटी में संयुक्त संचालक, दो सहायक संचालक, दो सिस्टम मैनेजर शामिल हैं जिनकी रिपोर्ट सोमवार तक आने की उम्मीद की जा रही है। कोषालय की जांच में सबसे ज्यादा तकनीकी पक्ष सामने आएंगे और उससे यह पता चल सकेगा कि किस-किस स्तर पर गड़बड़ी की गई और किस-किस की लापरवाही रही। गौरतलब है कि अब तक उज्जैन जेल पीएफ घोटाले में 15 करोड़ की राशि कर्मचारियों के खाते से निकाले जाने की पुष्टि हो चुकी है।
घोर लापरवाही क्रासचैक सिस्टम नहीं रखा
सूत्रों के मुताबिक जेलकर्मियों के पीएफ घोटाले में यह बताया जा रहा है कि जेल में एक ही व्यक्ति के पास एकाउंट क्रियेट, वेरीफाई और अप्रूव करने के लिए पासवर्ड दे दिया गया था। उसके समानांतर या ऊपर कोई क्रासचैक सिस्टम नहीं था। इससे घोटाले की शुरुआत हुई लेकिन यह भी संभावना जताई जा रही है कि अकेले जेल कर्मचारी इस घोटाले में शामिल नहीं हो सकता। इस घोटाले में कई स्तर पर मिलीभगत की आशंकाएं जताई जा रही हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि जब किसी कर्मचारी के पीएफ खाते से एक बार राशि निकाली गई तो दूसरी बार राशि निकाले जाते समय कोषालय में बैठे अधिकारी-कर्मचारी द्वारा कैसे उसे अनुमति दी गई। वहां के सिस्टम में पेमेंट क्यों नहीं रुका। अब तक की जांच में यह सामने आया है कि करीब 100 कर्मचारियों के खाते से राशि निकाली गई और कई कर्मचारियों के खाते से तो इतनी राशि निकाल ली गई कि उसके पीएफ खाते में राशि बचने के बजाय माइनस में पहुंच गई। ऐसे अब उसका पीएफ कटेगा तो वह उसके भविष्य के लिए नहीं बल्कि खाते की पूर्ति के काम आएगा।
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