‘जल क्रांति’ को ‘जन क्रांति’ बनाने की जरूरत: उमा भारती

केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने ‘जल क्रांति’ को ‘जन ‘क्रांति’ बनाने का आह्वान किया है। सुश्री भारती ने आज नई दिल्ली में ‘जल मंथन-3’ का उद्घाटन करने के बाद समारोह को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि पानी बचाने की जिम्मेदारी अकेले सरकारी तंत्र की नही हो सकती बल्कि इस कार्य के लिए जन भागीदारी बहुत जरूरी है। साथ ही गैर सरकारी संगठनों के सहयोग की भी जरूरत है।

जल को बचाने के लिए नवाचारों का जिक्र करते हुए सुश्री भारती ने कहा कि उनका मंत्रालय जल के प्रयोग एवं गंगा संरक्षण पर नया कानून लाने पर विचार कर रहा है। जल को समवर्ती सूची का विषय बनाये जाने पर उऩ्होंने कहा,-‘‘राज्यसभा और लोकसभा में जल को समवर्ती सूची में लाने की मांग उठी है। इस विषय पर राज्यों के साथ बातचीत कर रहे हैं। क्या संविधान की मर्यादाओं के अंतर्गत इस का कोई निदान निकाला जा सकता है? इस पर विचार चल रहा है।’’

केन – बेतवा परियोजना में आ रही बाधाओं एवं उनके समाधान का जिक्र करते हुए केद्रीय मंत्री ने कहा ‘‘केन- बेतवा परियोजना पर तेजी से काम चल रहा है। लेकिन एआईबीपी के तहत इसकी फंडिंग का अनुपात 60-40 निर्धारित हो गया है। हमारी जददोजहद है कि यह अनुपात या तो 100 प्रतिशत हो या 90-10 प्रतिशत हो।’’ उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस परियोजना पर 2017 के प्रारंभ में ही काम शुरू हो जायेगा एवं इसे सात साल के अंदर पूरा कर लिया जायेगा।

महानदी-गोदावरी नदी जोड़ो परियोजना पर हो रही राजनीति का जिक्र करते हुए सुश्री भारती ने कहा कि मानस-संकोष-तीस्ता-गंगा-महानदी-गोदावरी देश की नदी जोडो परियोजनाओं का ‘मदर लिंक’ है। उन्होंने कहा-‘‘इस पर जो विरोध है वह राजनीतिक है। तर्क और बुनियादी आधार के बजाय यह भावनाओं पर आधारित विरोध है। इस परियोजना से ओडिशा, बिहार एवं बंगाल की सुखाड़ तथा बाढ़ की समस्याओं का समाधान होगा।’’

केंद्रीय मंत्री ने ‘पार-तापी नर्मदा’ एवं ‘दमनगंगा पिंजल’ नदी जोड़ो परियेाजनाओं से होने वाले लाभों का जिक्र करते हुए कहा कि ‘दमनगंगा पिंजल’ मुम्बई के लिए 2060 तक पीने के पानी की व्यवस्था करेगी और ‘पार-तापी नर्मदा’ महाराष्ट्र और गुजरात के उन आदिवासियों की प्यास बुझाएगी जो वर्षों से पानी की समस्या से जूझ रहे हैं।

गंगा संरक्षण पर हुए कार्यों की चर्चा करते हुए सुश्री भारती ने कहा कि इस पर तेजी से कार्य चल रहा है और जो गंगा विश्व की दस सबसे प्रदूषित नदियों में शामिल होती थी वह आऩे वाले समय में निश्चित ही दुनिया की 10 स्वच्छ नदियों में शामिल होगी। जल संसाधन प्रबंधन के विभिन्न विषयों की चर्चा करते हुए केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि ‘जल उपभोक्ता संगठन’ कई राज्यों में ठीक से काम नहीं कर रहे हैं।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण राज्य मंत्री श्री विजय गोयल ने कहा कि आने वाली पीढ़ियों के लिए जल संरक्षण समय की मांग है। उन्होंने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि जल के जो प्राकृतिक संसाधन हमें अतीत में मिले हैं वह भविष्य में भी उपलब्ध हों। केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण राज्य मंत्री डॉ. संजीव बालियान ने दूषित जल प्रबंधन पर और अधिक ध्यान देने का आह्वान किया। उऩ्होंने कहा कि हमारे देश में बड़ी संख्या में जल का दुरूपयोग हो रहा है यदि इसका समुचित प्रबंधन कर लिया जाए तो इस बहुमूल्य प्राकृतिक संपदा को बचाया जा सकता है। मंत्रालय के सचिव डॉ. अमरजीत सिंह ने कहा कि हमें जल के प्रयोग की जिम्मेदारी तय करनी होगी ताकि इसका दुरूपयोग रोका जा सके। उन्होंने कहा कि इसके लिए जल संरक्षण के महत्व को समझने की संस्कृति विकसित करनी होगी।

इस एक दिवसीय सम्‍मेलन में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, नदी घाटी प्रबंधन, नदी संरक्षण और  पारिस्थितिकी, बाढ़ प्रबंधन जल प्रयोग कुशलता और सहभागिता सिंचाई प्रबंधन जैसे विषयों पर व्‍यापक विचार-विमर्श हुआ। सम्‍मेलन में मंत्रालय की नीतियों को लोगों के प्रति ज्‍यादा मित्रवत बनाने और राज्‍यों की आवश्‍यकताओं के प्रति ज्‍यादा उत्तरदायी बनाने पर ध्‍यान दिया गया।

इस सम्‍मेलन में राज्यों एवं संघ शासित प्रदेशों के सिंचाई/जल संसाधन मंत्री, जल प्रबंधन क्षेत्र के प्रख्यात विशेषज्ञ, गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि और केंद्र एवं राज्य सरकारों के सभी संबंधित विभागों के वरिष्‍ठ अधिकारियों समेत करीब 700 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

उल्‍लेखनीय है कि जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने जल संसाधन विकास और प्रबंधन में जुड़े विभिन्‍न पक्षों के बीच व्‍यापक विचार विमर्श की आवश्‍यकता पर समय-समय पर बल दिया है ताकि जल संसाधन विकास को पर्यावरण, वन्‍य जीवों और विभिन्‍न सामाजिक एवं सांस्‍कृतिक पद्धतियों के साथ बेहतर ढ़ंग से जोड़ा जा सके। जल मंथन कार्यक्रमों का आयोजन इसी उद्देश्‍य से किया जाता है।  नवंबर 2014 और फरवरी 2016 में आयोजित पहले दो जल मंथन कार्यक्रम बहुत सफल रहे हैं।

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