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जंगल महकमे में प्रशासनिक अराजकता, फील्ड अफसरों में टकराव, तबादला आदेश किए जा रहे नजरअंदाज

मध्य प्रदेश में वन विभाग में इन दिनों फील्ड के अफसरों में टकराव की परिस्थितियां बन रही हैं। आईएफएस अधिकारियों द्वारा ही राज्य शासन के तबादला आदेशों को नजरअंदाज किया जा रहा है और स्थानांतरण के बाद भी मनचाही पोस्टिंग नहीं मिलने से पदों पर जमा हैं। पढ़िये जंगल महकले की प्रशासनिक अराजकता जैसी स्थिति पर विशेष रिपोर्ट।
प्रधान मुख्य वन संरक्षक मुख्यालय में आधा दर्जन शाखाओं भू-अभिलेख, समन्वय, वित्त एवं बजट, अनुसंधान एवं विस्तार, उत्पादन और संयुक्त वन प्रबंधन में अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक अफसरों की पदस्थापना नहीं हो पा रही है। इसकी मुख्य वजह एपीसीसीएफ स्तर के अधिकारियों की कमी. इसकी वजह से मुख्यालय में पदस्थ अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक एसपी शर्मा को ग्रीन इंडिया मिशन के साथ-साथ उन्हें उत्पादन, वित्त एवं बजट, समन्वय और कार्य-आयोजना शाखा का दायित्व संभालना पड़ रहा हैं। इसी तरह से यूके सुबुद्धि विकास शाखा के अलावा बांस मिशन और संयुक्त वन प्रबंधन शाखा का दायित्व निभा रहे हैं। जबकि मुख्यालय में ही पदस्थ अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक शशि मलिक जैसे अफसर खाली बैठे हुए हैं। मलिक केवल मानव संसाधन शाखा में सहायक भूमिका में है। इस शाखा के मुखिया पीके सिंह है।
तबादला आदेश पर अधिकारी अमल नहीं कर रहे
विभाग में आधा दर्जन से अधिक स्थानांतरित अफसरों ने तबादला आदेश को ठेंगा दिखा रहे हैं। महकमे में प्रशासनिक अराजकता का माहौल बनने का एक कारण यह भी बताया जा रहा है। फील्ड में पदस्थ आईएफएस अफसर मनचाही पोस्टिंग नहीं होने की वजह से नई पदस्थापना ज्वाइन नहीं कर रहें हैं। इस संबंध में तर्क यह दिया जा रहा है कि स्थानांतरित अफसर की जगह पर किसी नए अधिकारी की पदस्थापना नहीं की गई है। यह तर्क प्रशासनिक अफसरों के गले नहीं उतर रही है। एक सीनियर अधिकारी का कहना है कि ऐसी स्थिति में किसी अन्य अधिकारी को प्रभार देने की परंपरा है। विभाग में स्थापित परंपरा का पालन करना चाहिए। अगर तबादला आदेश की नाफरमानी होती रही तो अनुशासनहीनता की स्थिति निर्मित हो जाएगी। अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक मनोज अग्रवाल को उज्जैन सर्किल से हटाकर लघु वनोपज संघ में पदस्थ किया गया है परंतु मनचाही पदस्थापना नहीं होने की वजह से उज्जैन में ही डटे हैं, जबकि उज्जैन सर्किल का प्रभार इंदौर सर्किल के सीसीएफ नरेंद्र कुमार सनौडिया को दिया जा सकता है। पूर्व में ग्वालियर छिंदवाड़ा होशंगाबाद सर्किल में सीसीएफ के पद का प्रभार दूसरे अफसरों को दिया गया था। खंडवा सर्किल का प्रभाव अभी भी वर्किंग प्लान अफसर टीएस सुलिया के पास है. वन मंत्री विजय शाह की नाराजगी कारण ग्वालियर स्थानांतरित किए गए हरदा डीएफओ अंकित पांडेय को होशंगाबाद वन मंडल और हरदा उत्पादन वन मंडल का कार्यभार मिल गया। इसी प्रकार छतरपुर डीएफओ बेनी प्रसाद दातोनिया को उनकी विवादित कार्यशैली के चलते वन मंडल से हटाकर वन विकास निगम में पदस्थ किया गया, परंतु वे अभी कार्यभार मुक्त नहीं हुए हैं, बल्कि टीकमगढ़ वन मंडल का प्रभार अलग से मिल गया है।
पांच वन मंडल में डीएफओ के पद रिक्त
प्रशासनिक मैनेजमेंट की कमियों के चलते ही वन मंडलों में डीएफओ के पद रिक्त पड़े हैं। एक प्रमोटी आईएफएस अफसर अपनी पदस्थापना की बाट जो रहा है। इसके अलावा प्रमोटी आईएफएस अफसरों को वन मंडलों में पदस्थ किया जा सकता है। मसलन, रायसेन उत्पादन वन मंडल को बंद करने का प्रस्ताव चल रहा है। बावजूद इसके, वहां डीएफओ की पद स्थापना कर दी गई, यानी राजस्व विहीन उत्पादन शाखाओं का प्रभाव सीनियर राज्य मन सेवा के अधिकारियों को सौंप कर वहां पदस्थ आईएफएस अफसरों को वन मंडल में पदस्थ किया जा सकता है।
पूर्व आईएफएस की नजर में प्रशासनिक मैनेजमेंट की कमी
इस परिस्थिति पर एक रिटायर्ड वन बल प्रमुख ने टिप्पणी की कि मुख्यालय में प्रशासनिक मैनेजमेंट की कमी नजर आ रही है। अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक के खाली पड़े पदों को प्रतिनियुक्ति पर काम कर रहे अफसरों की सेवाएं मूल विभाग में लेकर उन्हें पदस्थ किया जा सकता है। इस संबंध में महकमे द्वारा कोई भी प्रयास नहीं किए गए। सतपुड़ा के गलियारों की खबर यह भी है कि कुछ अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षकों के बीच शह और मात का खेल भी चल रहा है। मुख्यालय के अलावा टकराव की स्थिति फील्ड में भी बनी हुई है। बैतूल, उज्जैन और छतरपुर सर्किल में सीनियर अफसरों के डीएफओ, एसडीओ और रेंजरों के साथ तक राहत की खबरें सुर्खियों में है। गौरतलब यह है कि टकराव के चलते विभाग के रूटीन के कामकाज प्रभावित हो रहे हैं।
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