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छायावाद में हिन्दी कविता में अनेक प्रयोग किये गये: राकेश शर्मा
एकाग्र ‘गमक’ श्रृंखला अंतर्गत आज साहित्य अकादमी द्वारा श्री राकेश शर्मा का छायावाद के सौ वर्ष पर ‘व्याख्यान’ एवं सुश्री रागिनी मख्खर, इंदौर द्वारा ‘नृत्य-नाटिका’ की प्रस्तुति दी गई | कार्यक्रम की शुरुआत श्री राकेश शर्मा के व्यख्यान से हुई जिसमे उन्होंने कहा- छायावाद में हिन्दी कविता में अनेक प्रयोग किये गये हैं।
निराला ने छन्द तोड़ा भी और नवगीत का प्रवर्तन भी किया। जो कविता राज दरबारों तक सीमित थी, उसे मनोरंजन के बजाय जनसामान्य को सुख-दुःख व्यक्त करने का माध्यम बनाया। निराला ने अपनी पत्रकारिता के माध्यम से अंग्रेज साम्राज्य के समक्ष प्रश्न खड़े किये। जयशंकर प्रसाद ने भारतीय सांस्कृतिक विरासत से अनेक प्रसंग लेकर उन्हें तत्कालीन भारतीय समाज के समक्ष रखा और यह प्रमाणित किया कि भारतीयता का क्या मतलब है। सुमित्रानंदन पंत ने प्रकृति और मानव के परस्पर संबंधों पर कवितायें रची। महादेवी वर्मा ने नारी अस्मिता की रक्षा और उसकी स्त्रीत्व की ओर समाज का ध्यान खींचा।
कई अर्थों में छायावाद भक्तिकालीन कविता से आगे निकली। जैसे-स्त्री अस्मिता के प्रश्नों पर छायावादी कवियों का दृष्टिकोण अधिक व्यापक है। हिन्दी खड़ी बोली में सम्पूर्ण काव्य रचा गया और तबसे वह हिन्दी कविता की भाषा बनी। छायावाद पर हिन्दी आलोचकों ने दोष आरोपित किये थे, बाद के आलोचकों ने उनका खण्डन किया। छायावाद की सबसे तर्कसंगत आलोचना आचार्य नंददुलारे वाजपेयी और डॉ. रामविलास शर्मा ने की। जब निराला ने छन्द तोड़ा था, उस समय कविता ने काव्यात्मकता कम, छंदात्मकता ज्यादा थी। आज यह स्थिति है कि कविता में लय नहीं है और काव्यात्मकता भी नहीं। इसलिए समाज और कविता के बीच एक गहरी खाई पैदा हो गयी है। आज की जरुरत है कि कविता में छन्द की वापसी हो, इस वर्तमान संदर्भ में नवगीत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और छायावाद के विभिन्न पक्षों पर चर्चा करते हुए अपनी वाणी को विराम दिया ।
ग्राम- नयामतपुर, इटावा (उत्तरप्रदेश) में जन्मे श्री राकेश शर्मा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्राम- नयामतपुर, इटावा और उच्च शिक्षा कानपुर विश्विद्यालय से प्राप्त की | आपकी लगभग बारह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और कई पत्रिकाओं का संपादन भी कर चुके हैं, आप कुछ सुप्रतिष्ठित समाचार पत्रों में स्तम्भ लेखन का कार्य भी कर चुके हैं| श्री शर्मा को साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश द्वारा श्रीकृष्ण सरल, गुंजन कला सदन, जबलपुर द्वारा साहित्य गौरव अलंकरण एवं श्री मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति, इंदौर द्वारा सारस्वत सम्मान सहित कई सम्मान प्राप्त हैं|
दूसरी प्रस्तुति ख्यात कथक नृत्यांगना एवं गुरु सुश्री रागिनी मख्खर और उनकी शिष्याओं द्वारा कत्थक नृत्य की हुई- इस प्रस्तुति में छह ऋतु – बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत एवं शिशिर सभी अपनी विशेषताओं के साथ कथक के विभिन्न रूप जैसे तराना, ठुमरी, बंदिश, होरी के रूप आदि| यह प्रस्तुति रीति काल के प्रसिद्ध कवि श्री पद्माकर जी के पदों पर आधारित, कथक के चित्रण के साथ तीनताल, रूपक, झपताल, कहरवा तालों में निबद्ध थी ।
डॉ. रागिनी मख्खर द्वारा परिकल्पित इस प्रस्तुति में संगीत संयोजन- तबला -श्री चारुदत्त फड़के जी; पढ़ंत – डॉ. रागिनी मख्खर जी एवं चारुदत्त फड़के जी; शब्द रचना- श्रीमती वैशाली बकोरे; स्टूडियो अरेंजमेंट- श्री अमोग कुलकर्णी; हारमोनियम एवं गायन– श्री चिन्मय कोल्हाटकर एवं सहस्वर- श्री नागेश अडगांवकर के थे | नृत्य में डॉ. मख्खर की शिष्याएँ सुश्री नत्शा सरस्वती, तान्या मंडलोई, पलक शर्मा, ख़ुशी सिंह, रिधुमा त्रिपाठी, विदुषी दवार, तनिष्क त्रिवेदी और गौतम सिंह राज आदि शामिल थे |
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