चुनाव मोड में BJP-कांग्रेस, कमियों से भरे संगठनों से जूझते दल, चुनौती-संघर्ष-जोश में तालमेल बैठाने की कवायद

मध्य प्रदेश में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अब महज कुछ महीने का समय बचा है तो सत्ताधारी दल भाजपा और कांग्रेस दोनों ही चुनाव मोड में आ गए हैं। भाजपा संगठन और सरकार नेता-कार्यकर्ता से लेकर मंत्री-अफसरों को टास्क दिए जा रहे हैं तो कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भरने के लिए बैठकें करने की रणनीति पर चल रही है। मगर दोनों प्रमुख दलों के संगठन में कमजोरी पार्टी नेतृत्व भांप रहा है और इसमें बदलाव की हवा बीच-बीच में बहने लगती है। आईए आपको बताएं इन दलों की चुनावी रणनीति के बारे में।

विधानसभा चुनाव में आठ से नौ महीने का समय बचा है। भाजपा अपनी सरकार को बचाए रखने के लिए अब विकास योजनाओं को तेजी से अमलीजामा पहनाने में जुटने की रणनीति पर चलने वाली है। इसके लिए मंत्रियों, विधायकों को उनके क्षेत्रों के विकास कार्यों के शिलान्यास, भूमिपूजन, लोकार्पण के कार्यक्रम तैयार करने के लिए कहा जा चुका है। इन कार्यक्रमों का क्षेत्रों में प्रचार-प्रसार करने के लिए भी सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों का सहारा लिया जा रहा है।
मंत्री-अफसरों को टास्क
वहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चुनावी वर्ष के मद्देनजर 2023 के पहले दिन से कमर कसकर काम करने के निर्देश दे चुके हैं। उन्होंने नए साल की शुभकामना के बहाने मंत्रालय, पीएचक्यू व संचालनालय के अफसरों को अपने सीएम हाउस में बुलाकर टास्क दे दिया है। वहां मौजूद कुछ अधिकारियों का कहना है कि सरकार के कामों के बारे में जनता तक जानकारी पहुंचाने के लिए क्षेत्र में सक्रियता बढ़ाने को कहा गया है। साथ ही जनता के कामों में देरी नहीं होने तथा योजनाओं का लाभ संबंधित लोगों तक पहुंचने का ध्यान देने को कहा गया है।
कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भर रही
इधर, कांग्रेस 2018 की तरह सरकार बनाने की तैयारी में जुटी है जिसके लिए कार्यकर्ताओं में जोश भरने की रणनीति अपना रही है। सतना का ओबीसी सम्मेलन हो या टीकमगढ़ की बैठक, पार्टी कार्यकर्ताओं को चुनाव के लिए तैयार रहने का संदेश दे रही है। फिलहाल विधानसभा चुनाव में टिकट की दावेदारी को लेकर अब पार्टी ने अपनी रणनीति बदलकर क्षेत्र में नेता की पकड़, संगठन में सक्रियता, स्थानीयता जैसे बिंदुओं को महत्व दिए जाने का फार्मूला बनाया है। इससे बैठकों व सम्मेलनों में कांग्रेस नेता अपने समर्थकों के साथ बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं।
दोनों दल जूझ रहे संगठन में कमियों से
चुनावी वर्ष होने के बाद भी भाजपा और कांग्रेस दोनों ही संगठन की कमियों से जूझ रहे हैं। भाजपा में जहां असंतुष्ट वरिष्ठ नेताओं को मानने के लिए ऐसा कोई बड़ा नाम नहीं है जो उन्हें मना सकें। संगठन में जिम्मेदार नेताओं में से कुछ ऐसे हैं जो कई बार विवादास्पद बयान देकर अपने ही नेताओं के लिए संकट की परिस्थितियां पैदा कर देते हैं। कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं के बीच संबंधों को लेकर कई बार सुर्खियां बनती हैं जो उनके व्यवहार में भी झलकता है। कई बार पार्टी के फैसलों में भी इन नेताओं के बीच अच्छे संबंध नहीं होने की झलक दिखाई देती है। संगठन में नेताओं को जिम्मेदारी दिए जाने को लेकर भी नेता असंतुष्ट नजर आते हैं। मगर प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ की वरिष्ठता की वजह से यह सब खुलकर सामने नहीं आता है जो चुनाव में कहीं न कहीं पार्टी के लिए नुकसान पहुंचा सकता है।

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