राजनीति में वोट के लिए राजनीतिक दल अपनी मूल विचारधारा को कई बार तिलांजलि देने लगे हैं और चुनाव के नजदीक आते-आते वोटर को आकर्षित करने के लिए ऐसी गतिविधियां अक्सर बढ़-चढ़कर होने लगती हैं। मध्य प्रदेश में भी यही हो रहा है। आदिवासियों को रिझाने उनके नायकों को बड़े आयोजन, दलितों के लिए बाबा साहेब आंबेडकर का महाकुंभ, रमजान के महीने में रोजा अफ्तार, हनुमान जयंती पर सुंदरकांड पाठ, संत-महात्मा-पुजारियों को पार्टी से जोड़ना। पढ़िये हमारी विशेष रिपोर्ट।
मध्य प्रदेश में चुनाव के मद्देनजर सत्ताधारी दल भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों ही समाज के हर वर्ग को रिझाने में लगे हैं। भाजपा के लिए हिंदू मुख्य शक्तिपुंज है और वह खुलकर हिंदू पर्वों को पार्टीस्तर पर आयोजन करती है। चाहे रामनवमी हो या हनुमान जयंती या गुड़ी पड़वा या दीपावली, दशहरा या फिर रक्षाबंधन सभी पर्वों को पार्टी स्तर पर मनाने में कोई परहेज नहीं करती। मगर कांग्रेस कुछ साल पहले तक अपने आपको धर्मनिरपेक्ष पार्टी बताने व दिखाने के लिए धार्मिक आयोजनों से दूरी बनाकर रखती थी जो अब धीरे-धीरे खत्म की जा रही है। गणेशोत्सव हो या दुर्गोत्सव या हनुमान जयंती, इन धार्मिक पर्वों को पार्टी कार्यालय में ही आयोजित किया जाने लगा है। आज भी भोपाल प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय इंदिरा भवन में सुंदरकांड पाठ का आयोजन किया गया।
आदिवासियों के नायकों को पहचान देकर वोट हासिल करने की कवायद
आदिवासी वोटबैंक के लिए विश्व जनजातीय दिवस बिरसा मुंडा जयंती पर भोपाल में रानी कमलापति को पहचान देने रेलवे स्टेशन का नामकरण किया गया तो टंट्या मामा के नाम पर इंदौर में चौराहा बनाया और मालवा में उनकी प्रतिमा की स्थापना की गई। पेसा एक्ट को लागू करके उसके नियमों को बताने के बहाने आदिवासी बहुत स्थानों पर जगह-जगह आयोजन किए गए। वहीं, कांग्रेस भी राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में जब मध्य प्रदेश से गुजरे तो उन्होंने टंट्या मामा की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए तो पेसा एक्ट का श्रेय कांग्रेस की दिग्विजय सरकार को देने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
दलितों के लिए आंबेडकर पर भी निगाहें
दलितों को वोटबैंक के रूप में समझकर कांग्रेस और भाजपा, बाबा साहेब आंबेडकर पर नजरें टिकाए रहते हैं। बाबा साहब की जन्मस्थली को भव्य आकार देकर तो उनकी प्रतिमाएं लगाकर राजनीतिक दल दलितों के दिल के भीतर अपनी पैठ बनाने में लगे रहे हैं। ग्वालियर में भाजपा 16अप्रैल को बाबा साहेब आंबेडकर महाकुंभ आयोजित कर रही है तो भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी महू को नहीं भूले थे और वे आंबेडकर की जन्मस्थली पर काफी समय रहे। यह देखा गया है कि आंबेडकर के अपमान की घटनाओं पर तुरंत एक्शन में आने वाले इन राजनीतिक दलों को सत्ता का रास्ता इनके बिना नहीं दिखता है। कांग्रेस दलित और आदिवासी के सहारे कई दशकों तक सरकार बनाती रही लेकिन भाजपा ने इसमें सेंधमारी कर उसके हाथ से सत्ता खींचने में सफलता हासिल की है। इसीलिए भाजपा-कांग्रेस इन वर्गों को खुश करने का कोई मौका नहीं गंवाते हैं।
कांग्रेस की बदलती रणनीति से भाजपा चिंतित
चुनावी वर्ष में कांग्रेस जिस तरह से हिंदू-मुस्लिम समुदाय को साधने में जुटी है, उस पर अब भाजपा किसी न किसी बहाने सवाल उठा रही है। रमजान के महीने में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ रोजा अफ्तारी में जाते हैं तो मंदिर पुजारी प्रकोष्ठ बनाकर धर्म संवाद का आयोजन करते हैं, हनुमान जयंती पर पीसीसी में सुंदरकांड होता है तो भाजपा में अजीब से बेचैनी दिखाई देती है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा तक मुसलमानों को कमलनाथ द्वारा दंगों का भय दिखाने के आरोप लगाकर उन्हें भड़काने के आरोप लगाने से नहीं चूक रहे हैं।
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