कुम्भकरण वध से रावण का बल और अहँकार दोनों ढह गये

लवकुश रामलीला समिति दिल्ली द्वारा संस्कृति विभाग के लिए आयोजित रामलीला के छठवें दिन रामसेतु बंधन, विभीषण शरणागति, रावण और अंगद संवाद, लक्ष्मण शक्ति और कुम्भकरण वध के प्रसंगों का मंचन किया गया। रवीन्द्र भवन के मुक्ताकाश मंच पर आयोजित इस रामलीला में इन प्रसंगों के माध्यम से यह भी रेखांकित हुआ कि कैसे एक-एक करके मारे जाते रावण के योद्धाओं की वजह से उसका बल और अहँकार दोनों ढहे जाते चले गये।जैसे-जैसे रामलीला अपने समापन की ओर बढ़ रही है, शहर के नागरिकों का उत्साह और सहभागिता देखते ही बन रही है। भोपाल में दिल्ली की रामलीला के प्रदर्शन का प्रयास इन मायनों में सफल रहा है कि उसे सर्वश्रेष्ठ दर्शक प्रतिसाद मिला है। पिछले दो-तीन दिनों से बैठने के लिए अतिरिक्त कुर्सियों की व्यवस्था भी की जा रही है। रामलीला अपने प्रदर्शन में जितनी भव्य और आधुनिक संसाधनों से युक्त है, उतना ही वह दर्शकों तक अपनी बात सम्प्रेषित करने में भी सफल रहती है।  

दर्शकों को सबसे ज्यादा आकर्षित करने वाले गणेश की भूमिका निबाह रहे कलाकार कमल कुमार से उनके बारे में जाना तो बताया कि वे पन्द्रह वर्षों से लवकुष रामलीला का हिस्सा हैं। उन्‍होंने श्रीराम भारतीय कला केन्द्र में निरन्तर नृत्य का प्रषिक्षण लिया है। गणेश के रूप में उनका नृत्य भोपाल के दर्शकों का सबसे प्रिय आकर्षण है। दूसरी ओर राम का चरित्र निबाहने वाले विजय कुमार कटारिया पच्चीस साल से रामलीला से जुड़े हैं। उनको रावण का मेकअप करने में भी बहुत रुचि है। इसी प्रकार सीता का चरित्र निबाहने वाली नैंसी दिल्ली में अनेक टीवी धारावाहिकों में काम कर चुकी हैं। लवकुश रामलीला के डायरेक्टर प्रवेश कुमार रावण बनते हैं। साठ लोगों की टीम का भोपाल में और ढाई सौ लोगों की टीम का जिम्मा दिल्ली में सम्हालते हैं। बचपन से रामलीला देखते थे। कृष्णलीला का भी हिस्सा बने और बाद में इस समिति का अविभाज्य हिस्सा। प्रवेश की रुचि लक्ष्मण बनने में थी लेकिन संस्था के प्रधानमंत्री ने उन्हें रावण बनने के लिए प्रोत्साहित किया जो उनके लिए बड़ा उपयोगी रहा।

आज रामलीला में रविवार के कारण पहले के दिनों की अपेक्षा और अधिक दर्शक आये। रवीन्द्र भवन के आसपास वाहनों को खड़ा करना सबके लिए संघर्ष था। बहुत से दर्शक समय से बहुत पहले आकर अपना स्थान ग्रहण कर चुके थे। आज के प्रसंगों में रावण और अंगद के संवादों ने बहुत तालियाँ हासिल कीं वहीं हनुमान का लक्ष्मण के लिए औषधि ढूँढ़कर लाना भी बहुत रोचक रहा। कुम्भकरण के साथ युद्ध और उसका धराषायी होना चमत्कारिक था। दर्शकों में यह सन्देश बखूबी जा रहा है कि असत्य पर सत्य की, असुर पर सुर की, अहँकार पर आत्मविष्वास की सदैव विजय होती है।

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