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कांग्रेस नेतृत्व को आंखें दिखा रहे नेता, फिर भी एक्शन नहीं ले रहा संगठन

विधानसभा चुनाव 2023 के लिए अब उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है क्योंकि एक साल की अवधि शेष बची है। मगर विधानसभा चुनाव 2018 में सत्ता में आने के बाद उससे बाहर हो चुकी कांग्रेस में आज भी संगठन पर नेता हावी दिखाई दे रहे हैं। नेता कभी राष्ट्रपति चुनाव में पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ भाजपा समर्थित प्रत्याशी को वोट डाल देते हैं तो कभी पार्टी के आंतरिक संगठनात्मक चुनाव को नजरअंदाज करने से भी बाज नहीं आते हैं। संगठन ऐसे लोगों के चिन्हित होने का दावा तो जरूर करता है लेकिन उन पर अनुशासन का डंडा नहीं चला पाता है। केवल उन लोगों को अनुशासनहीनता का डरा दिखाया जा रहा है जो जिले व ब्लॉक स्तर में सक्रिय हैं।
कांग्रेस में विधायक और प्रदेश कांग्रेस कमेटी प्रतिनिधि स्तर के बड़े नेता संगठन को बार-बार आंखें दिखा रहे हैं। जुलाई में राष्ट्रपति चुनाव हुए थे तो कांग्रेस ने अपना अधिकृत प्रत्याशी यशवंत सिन्हा को बनाया था। मगर सिन्हा को वोट देने के बजाय पार्टी के करीब डेढ़ दर्जन विधायकों ने क्रास वोटिंग की थी। पार्टी के 96 विधायक हैं और दो निर्दलीय विधायकों ने भी यशवंत सिन्हा को समर्थन देने का बयान दिया था। इस तरह सिन्हा के कम से कम 98 वोट पक्के थे मगर जब मतगणना हुई तो उन्हें केवल 79 मत ही मिले। यानी निर्दलीय विधायकों के वोट हटा भी दें तो कम से कम 17 कांग्रेस विधायक के वोट सिन्हा को नहीं दिए गए। इनमें से या तो पांच निरस्त घोषित मतों में चले गए या फिर सभी भाजपा समर्थित प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू के खाते में चले गए। मुर्मू को मध्य प्रदेश से 146 वोट मिले जबकि भाजपा के 127 विधायक हैं। उसे समर्थन देने वाले दो बसपा, एक सपा और दो निर्दलीय को मिला लें तो उन्हें अधिकतम 133 वोट मिलना थे। इस तरह कांग्रेस संगठन को आंखे दिखाकर भाजपा प्रत्याशी को वोट करने वाले पार्टी के 13 से 17 विधायक हैं जिन पर ढाई महीने बाद भी कोई एक्शन नहीं हुआ है।
अब संगठनात्मक चुनाव में पार्टी को आंखें दिखाईं
राष्ट्रपति चुनाव में संगठन को आंखें दिखाने वालों पर कोई एक्शन नहीं होने के बाद अब ऐसे नेताओं के हौंसले और बुलंद हो गए हैं। पार्टी भाजपा को संगठनात्मक चुनाव में अपने आपको आदर्शवादी बताने के लिए बाकायदा मतदान से चुनाव कराने की पद्धति अपनाकर जवाब देना चाह रही थी लेकिन नेतृत्व को ठेंगा दिखाने वाले लोगों ने फिर अपनी चलाई। मध्य प्रदेश में प्रदेश प्रतिनिधि बनाए गए ऐसे 26 वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव प्रक्रिया में भाग नहीं लेकर भाजपा को मौका दिया। वे कांग्रेस अध्यक्ष के प्रत्याशियों मल्लिकार्जुन खड़गे या शशि थरूर में से किसी एक को चुनने की मतदान की प्रक्रिया से अनुपस्थित रहे।
छोटे नेताओं पर अनुशासन का डंडा
विधायक और पीसीसी डेलीगेट्स की पार्टी के निर्देशों की अवहेलना की जाती है लेकिन अपने क्षेत्र, मोहल्ले, वार्ड में जमीन पर काम करने के बाद टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय प्रत्याशी बनने या अधिकृत प्रत्याशी के समर्थन के बजाय घर बैठने वाले छोटे नेताओं पर संगठन का डंडा दिखाई दिया। पिछले दिनों अनुशासन समिति की बैठक में नगरीय निकाय चुनावों में इस तरह के बागी नेताओं की अनुशासन समिति में पहुंची शिकायतों पर बड़े-बड़े नेताओं ने चर्चा की। उस अनुशासन समिति में राष्ट्रपति चुनाव में क्रास वोटिंग करने वाले विधायकों के बारे में कोई बात तक नहीं की गई। अब 26 प्रदेश प्रतिनिधियों की मतदान प्रक्रिया से अनुपस्थिति पर भी कोई चर्चा करने को तैयार नहीं दिखाई दे रहा है जबकि पीसीसी डेलीगेट्स बनने के लिए कुछ दिन पहले तक तमाम नेता यहां-वहां से फोन लगवा रहे थे। पीसीसी डेलीगेट्स बनने के बाद विजिटिंग कार्ड्स छपवा कर 26 नेता मतदान के दिन घर बैठ गए।
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