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कल 11 मई को तीन तलाक पर होगी सुनवाई
देश का सर्वोच्च न्याय मंदिर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ एक ऐसे मामले की सुनवाई शुरू करेगी जिसका नतीजा चाहे जो हो, वो इतिहास के पन्नों में दर्ज होगा. ऐसा मामला जिसके फैसले का इंतज़ार करोड़ों लोगों को है. जो करोड़ों लोगों के भविष्य पर सीधा असर डालेगा. शायद उसे हमेशा के लिए बदल कर रख देगा.
इस मुद्दे पर है सुनवाई?
यह मामला जिस पर सुनवाई होना है मुस्लिम महिलाओं के लिए बराबरी के हक का है . कि क्या उन्हें इस बात से सुरक्षा मिल सकती है कि उनका पति अपनी मर्ज़ी से तलाक, तलाक, तलाक बोलकर उन्हें घर से बाहर न निकाल सके. मसला मुस्लिम समाज में प्रचलित 3 तलाक का है. देश की सबसे बड़ी अदालत ने खुद इस पर संज्ञान लेकर सुनवाई शुरू की है.
मामले की सुनवाई, संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे हैं CJI
मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसकी सुनवाई 5 जजों की संविधान पीठ से कराने का फैसला लिया है. इसकी अध्यक्षता खुद चीफ जस्टिस जे एस खेहर करेंगे. बेंच गर्मी की छुट्टी में विशेष रूप से इस सुनवाई के लिए बैठ रही है. सुनवाई पर्सनल लॉ के 3 प्रावधानों तलाक ए बिद्दत यानी 3 तलाक, निकाह हलाला और मर्दों को 4 शादी की इजाज़त पर होनी है.
क्या है तलाक ए बिद्दत
तीन बार तलाक बोल कर शादी तोड़ने का अधिकार मुस्लिम पर्सनल लॉ में मर्दों को हासिल है. हालांकि, कई मुस्लिम विद्वान ये दलील देते हैं कि असल इस्लामिक नियमों में हर बार तलाक बोलने में 1 महीने का अंतराल होता है. ताकि, इस अवधि में मियां-बीवी में सुलह की संभावना तलाशी जा सके.
भारत में पति एक साथ 3 बार तलाक बोल कर शादीशुदा रिश्ते को खत्म कर सकता है. गुस्से में, मज़ाक में, नशे में, फोन पर, ईमेल पर..किसी भी तरह से एक साथ 3 तलाक बोलने को उलेमा तलाक मानते हैं. ये व्यवस्था पाकिस्तान, बांग्लादेश समेत कई मुस्लिम देशों में बंद की जा चुकी है. लेकिन भारत में मुस्लिम उलेमा इसे बनाए रखने के पक्ष में हैं
सुप्रीम कोर्ट पर क्या जिम्मेदारी?
सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम पर्सनल लॉ के इन्हीं प्रावधानों की समीक्षा करेगा. ये देखेगा कि ये मुस्लिम महिलाओं को मर्दों के मुकाबले गैर बराबरी की स्थिति में तो नहीं रखते? कहीं उन्हें असम्मानजनक स्थिति में जीने को मजबूर तो नहीं करते? क्या इन प्रावधानों को निरस्त करने या इनमें सुधार की ज़रूरत है? इन सभी मसलों पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को ये भी देखना होगा कि उसके फैसले से मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता का हनन न हो.
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