कला में साधना नहीं होने से सामने आते हैं दुष्परिणाम : कैलाशचंद्र

भारतीय चित्र साधना और सतपुड़ा चलचित्र समिति की ओर से आयोजित दो दिवसीय फिल्म निर्माण कार्यशाला के समापन सत्र में सामाजिक कार्यकर्ता कैलाशचंद्र ने कहा कि दादा साहब फाल्के ने भारतीय नायकों के जीवन को सामने लाने के लिए फिल्म बनाना शुरू किया। उनकी पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र से ही उनका उद्देश्य और दृष्टि सामने आती है। उसके बाद एक दर्जन से अधिक फिल्में उन्होंने भारतीय संस्कृति एवं नायकों पर बनाईं। लेकिन बाद में कला के प्रति दृष्टि में दोष आ गया। कला में जब साधना नहीं होती, तो उसके दुष्परिणाम होते हैं। इस अवसर पर मुख्य अतिथि सेज विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. वीके जैन और समिति के अध्यक्ष लाजपत आहूजा उपस्थित रहे।

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से आए चयनित युवा फिल्म निर्माताओं को संबोधित करते हुए कैलाशचंद्र ने कहा कि पश्चिम की फिल्में काम और अर्थ पर केंद्रित हैं। जबकि भारत का दर्शन धर्म पर आधारित है। इसलिए यहां के प्रारंभिक फिल्म निर्माताओं की दृष्टि धर्म के अनुरूप थी। भारतीय विचार दर्शन में धर्म और अर्थ, दोनों महत्व की बात हैं। लेकिन जब धर्म और मोक्ष की अनदेखी कर केवल अर्थ और काम पर दृष्टि केंद्रित हो जाती है, तब वह विकृति हो जाती है। युवा फिल्मकारों को सिनेमा में आई विकृति को दूर करना होगा।

उन्होंने कहा कि विकृति से बचने के लिए साधक का साधन और विवेक शुचितापूर्ण होना चाहिए। कला साधक को अपनी साधना के प्रति समर्पित रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि युवा फिल्मकारों को भारत की कहानियों को सामने लाना चाहिए। हमारे पास अनेक कहानियां हैं। स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेनेवाली कितनी ही वीरांगनाएं हैं, जिनके जीवन पर आज फिल्में बनाई जा सकती हैं।

सेज विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. वीके जैन ने कहा कि आज समाज को शिक्षा देनेवाली फिल्मों की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि ज्ञान, दृष्टिकोण, कौशल और कठिन परिश्रम के साथ जो भी काम करेंगे, उसमें हमें सफलता मिलेगी। फिल्म निर्माण के क्षेत्र में आनेवाले युवाओं को यह बातें ध्यान रखनी चाहिए। आभार व्यक्त करते हुए सतपुड़ा चलचित्र समिति के अध्यक्ष लाजपत आहूजा ने कहा कि यह लघु फिल्मों का समय है। ओटीटी पर भी छोटी फिल्मों के अलग से श्रेणी है। भारतीय चित्र साधना की ओर से भी प्रति दो वर्ष में राष्ट्रीय स्तर पर लघु फिल्मों का फिल्मोत्सव आयोजित किया जाता है।

सिनेमेटोग्राफी के लिए प्रकाश संयोजन की समझ आवश्यक :
इससे पहले प्रख्यात सिनेमेटोग्राफर हरीश पटेल ने ‘सिनेमेटोग्राफी’ विषय पर सैद्धांतिक और व्यावहारिक सत्रों में युवा फिल्म निर्माताओं के साथ सिनेमेटोग्राफी की बुनियादी बातों को साझा किया। उन्होंने बताया कि फिल्म निर्माण में कैमरामैन की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है लेकिन वह हमेशा पर्दे के पीछे रह जाता है। लोग निर्देशक और अभिनेता को तो जानते हैं लेकिन सिनेमेटोग्राफर को नहीं जानते। उन्होंने कहा कि सिनेमेटोग्राफी में प्रकाश संयोजन का बहुत महत्व है। अच्छा सिनेमेटोग्राफर बनने के लिए प्रकाश संयोजन की समझ बहुत आवश्यक है। इसके साथ ही उन्होंने कैमेरा, शॉट्स और लेंस की जानकारी दी।

संपादक का व्यावहारिक प्रशिक्षण :
‘फिल्म संपादन’ विषय पर फिल्म संपादक मनोज पटेल और अभिनव द्विवेदी ने व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया। श्री पटेल ने पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से संपादन के विभिन्न चरण समझाए। वहीं, द्विवेदी ने वीडियो क्लिप्स के माध्यम से संपादन की बुनियादी बातों का प्रशिक्षण दिया। इस अवसर पर मौके पर ही शिक्षार्थियों द्वारा बनाई गईं फिल्मों का प्रदर्शन किया गया और उन पर बातचीत की गई।

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