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एजी की प्रारंभिक रिपोर्ट बाहर कैसे आई, यह रहस्य तलाशना होगा सरकार को

ऑडिटर जनरल की रिपोर्ट के प्रकाशित होने पहले कई प्रक्रिया से तथ्यों की जांच पड़ताल को गुजरना होता है लेकिन संभवतः यह पहली बार हुआ है जब किसी मामले में एजी ने किसी मामले में सवाल उठाए और विभाग के स्थिति स्पष्ट करने के पहले ही वह सवाल बाहर आ गया। आधे-अधूरे तथ्यों के आधार पर बाहर आई जानकारी के बाद मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार को विपक्ष ने कटघरे में खड़ा कर दिया। ऐसे में खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सामने आकर स्थिति स्पष्ट करना पड़ी और सरकार के प्रवक्ता गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा को भी लंबी चौड़े वीडियो जारी कर स्थिति स्पष्ट करना पड़ी है।
मामला महिला बाल विकास के पोषण आहार था जिसमें ट्रक से सप्लाई होने वाले सामान के परिवहन में वाहनों के नंबर में गड़बड़ी सामने आई थी। एजी ने इस बारे में महिला बाल विकास विभाग से दो सप्ताह में जवाब मांगा था लेकिन दो सप्ताह में विभाग का जवाब आता उसके पहले ही एजी द्वारा उठाए गए सवाल विपक्षी दलों तक पहुंच गए। शराब नीति में उलझी दिल्ली सरकार को भाजपा को घेरने का मौका मिल गया तो प्रदेश में दस साल सरकार चलाने वाले दिग्विजय सिंह के हाथ भी वह जानकारी लग गई। फिर क्या था, दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया-दिग्विजय सिंह ने मध्य प्रदेश सरकार को घोटाले बाज सरकार प्रचारित करने का मौका भुना लिया। मगर मामले की गंभीरता को देखकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने ट्विटर से ही विपक्ष के सवालों का न केवल जवाब दिया बल्कि उसके पीछे छिपे उनके मकसद को भी बताने की कोशिश की।
बहरहाल जो भी हुआ, उससे मध्य प्रदेश के पोषण आहार व्यवस्था की खामियों को दुरुस्त करने का मौका मिल गया है लेकिन एजी की प्रारंभिक जानकारी की गोपनीयता के भंग होने से सरकारी तंत्र पर भी सवाल उठे हैं। इसके पीछे मध्य प्रदेश की सत्ताधारी दल-नौकरशाही को भी कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। सत्ताधारी दल में कुछ दिनों से नेताओं और मंत्रियों के बदले तेवर दिखाई दे रहे हैं तो नौकरशाही भी मुख्य सचिव की कुर्सी के गणित में उलझी है। कारण कुछ भी हों लेकिन यह साफ है कि इससे मध्य प्रदेश की तो बदनामी हो रही है, साथ ही जिन बच्चों को यह पोषण आहार उपलब्ध कराया जा रहा है, उनके नाम पर कौन खेल खेल रहा है, यह भी सवाल खड़ा हो गया है।
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