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एक राष्ट्र-एक चुनावः आजाद भारत में पहले लोकसभा-विधानसभा चुनाव में रखी गईं हर प्रत्याशी के लिए मतपेटी

देश के आजाद होने के बाद से 1967 तक एक राष्ट्र-एक चुनाव होते रहे लेकिन इसके बाद विधानसभाओं और लोकसभा के समय पूर्व भंग होने से यह सिस्टम बिगड़ता गया। आज हर साल चुनाव हो रहे हैं जबकि आजाद भारत के पहले लोकसभा-विधानसभा चुनावों के लिए साक्षरता कम होने की वजह से हर प्रत्याशी की एक मतपेटी से चुनाव कराए गए थे। भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे मध्य प्रदेश कैडर के आईएएस ओपी रावत हमें बता रहे हैं एक राष्ट्र-एक चुनाव के लिए क्या करना होगा और कब-कब क्या हुआ।
देश में कुछ दशकों से कभी लोकसभा तो कभी विधानसभा तो कभी इनके लिए उपचुनाव होते रहते हैं। चुनाव की वजह से केंद्र और राज्य सरकारों का कामकाज हर बार छह महीने तक के लिए ठप जैसा हो जाता है। चुनाव पूर्व तैयारियों को लेकर सरकारी अमला चुनावी वर्ष में कई महीने व्यस्त रहता है जिससे सरकार योजनाओं और आम आदमी के सरकारी कामकाज पर विपरीत असर पड़ता है। आचार संहिता लगने के बाद तो सरकारी मशीनरी तो पूरी तरह से चुनाव ड्यूटी में लग जाती है। ऐसे में एक राष्ट्र-एक चुनाव की याद आने लगती है।
अस्सी के दशक में एक राष्ट्र-एक चुनाव का आया सुझाव
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त रावत बताते हैं कि 1967 तक लोकसभा-विधानसभा के चुनाव साथ-साथ होते रहे। 1951-52 के प्रथम आम चुनाव से लेकर 1957, 1962 और 1967 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ होते रहे। इसके बाद कई विधानसभाएं समय के पहले विघटित हुईं और लोकसभा भी भंग हो गई तो लोकसभा-विधानसभा चुनाव अलग-अलग होते गए। 80 के दशक में फिर लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ कराने का विचार आया लेकिन सुझावों पर ज्यादा गंभीर प्रयास नहीं हुए।
2015 में तेजी से प्रयास, फिर भी अमलीजामा नहीं
80 के दशक के बाद 2015 में फिर तेजी से इसके लिए प्रयास शुरू हुए और विधि मंत्रालय ने भारत निर्वाचन आयोग से उसकी राय मांगी थी। रावत ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह आव्हान किया था और दो महीने भारत निर्वाचन आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। आयोग ने इसके लिए संविधान में कुछ संशोधनों व एक राष्ट्र-एक चुनाव के लिए जरूरतों के बारे में भी बताया था। मगर विचार में आई तेजी पर आज तक अमल नहीं हो सका।
आयोग ने बताया था, क्या-क्या करना होंगे संशोधन, क्या होंगी जरूरतें
भारत निर्वाचन आयोग ने अपनी राय के साथ जो बात रखी, उसके मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 83, 172, 327, 356 और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की कतिपय धाराओं में संशोधन करने की जरूरत बताई थी। साथ ही एक राष्ट्र, एक चुनाव के लिए भारत निर्वाचन आयोग को ईवीएम व वीवी पैट खरीदने के लिए जरूरत वाली राशि और केंद्रीय सुरक्षा बलों से पर्याप्त संसाधनों को उपलब्ध कराने की जरूरत बताई थी। आयोग ने सभी राजनीतिक दलों से भी इस पर सहमति लेकर फैसला लेने का सुझाव दिया था।
अब फिर अप्रैल से नवंबर के बीच चुनाव ही चुनाव
उल्लेखनीय है कि अप्रैल से लेकर नवंबर के बीच अब एकबार फिर छह राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होना है। अप्रैल-मई में कर्नाटक, नवंबर में पांच राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, मिजोरम के चुनाव होना है। इसके बाद 2024 में मार्च-अप्रैल में लोकसभा चुनाव होना है। कुछ समय पहले ही त्रिपुरा, मेघालय व नागालैंड विधानसभाओं के चुनाव हुए हैं।
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