एक आर्थिक भारत : वस्‍तुओं के लिए एवं संविधान की नजर में

आम धारणा यही है कि भारत ने राजनीतिक एकता तो हासिल की, लेकिन उसके अनुरूप आर्थिक एकता नहीं। वृहद आंकड़ों-वस्‍तु एवं सेवा कर नेटवर्क (जीएसटीएन)-के नये स्रोत के आधार पर आर्थिक सर्वेक्षण में राज्‍यों के बीच भारी आंतरिक वस्‍तु व्‍यापार की चर्चा की गई है। भारत के आंतरिक व्‍यापार और सकल घरेलू उत्‍पाद (जीडीपी) का अनुपात अन्‍य बड़े देशों की तुलना में लगभग 54 प्रतिशत है। जिस सीमा तक संवैधानिक प्रावधान एक आर्थिक भारत के निर्माण को सुगम बनाते है, उसकी चर्चा अंतिम खंड में की गई है।

      अंत: राज्‍य व्‍यापार प्रवाह के लिए किये गये अब तक के पहले आकलन से संकेत मिलता है कि कंपनियों के बीच सीमा पार आदान-प्रदान जीडीपी का कम से कम 54 प्रतिशत (चित्र -1) है, जिसका अर्थ यह हुआ कि घरेलू व्‍यापार उल्‍लेखनीय है। दिये गये दोनों चित्र अनुकूल तरीके से अन्‍य अधिकार क्षेत्रों के साथ तुलना करते है और कम से कम, ऐसा जरूर लगता है कि भारत आंतरिक रूप से काफी एकीकृत है। एक अधिक तकनीकी विश्‍लेषण इसकी पुष्टि करता है और पाता है कि व्‍यापार लागत व्‍यापार में भारत में लगभग उसी सीमा तक कमी लाती है, जितनी अन्‍य देशों में।

 

एक दिलचस्‍प निष्‍कर्ष जिसके साक्ष्‍य अस्‍थायी हैं, उनका पूरा साक्ष्‍य नहीं है, वह यह है कि जहां राजनीतिक सीमाएं लोगों के प्रवाह को बाधित करती है, भाषा वस्‍तुओं के प्रवाह में कोई उल्‍लेखनीय बाधा प्रतीत नहीं होती।

वस्‍तुओं एवं लोगों के प्रवाह का रूझान व्‍यापक रूप से पूर्ववर्ती अवधि के अनुरूप है, लेकिन इसमें कुछ आश्‍चर्यजनक आंकड़े भी हैं (चित्र-2) :

  • उत्‍तराखंड, हिमाचल प्रदेश एवं गोवा जैसे छोटे राज्‍य अधिक व्‍यापार करते हैं; तमिलनाडु, गुजरात एवं महाराष्‍ट्र के विनिर्माण पॉवरहाऊस शुद्ध निर्यातक है।
  • अन्‍यथा, कृषि प्रधान हरियाणा और उत्‍तरप्रदेश भी क्रमश: गुरूग्राम एवं नोएडा के कारण व्‍यापारिक पॉवरहाऊस है, जो दिल्‍ली के वृहद शहरी आकार का हिस्‍सा बन गये हैं।

यह निष्‍कर्ष संभवत: गलत प्रतीत होता है कि भारत के भीतर वस्‍तुओं में व्‍यापार उच्‍च है। इसका उच्‍च स्‍तर अप्रत्‍यक्ष करों की वर्तमान प्रणाली का एक परिणाम हो सकता है, जो कुछ महत्‍वपूर्ण मामलों में राज्‍यों के भीतर के व्‍यापार पर राज्‍यों के बीच के व्‍यापार का समर्थन करता है। अगर यह सच है, तो जीएसटी इन विसंगतियों को दूर करने के द्वारा देश में अंत: राज्‍य व्‍यापार को सामान्‍य बना देगा। कुछ मामलों में इससे व्‍यापार में कमी आ सकती है, फिर भी अनुपालन में सुधार, प्रतिस्‍पर्धी संवर्द्धनों तथा अन्‍य चैनलों के कारण कर राजस्‍व पर इसका एक सकारात्‍मक प्रभाव है।

भारतीय संविधान केन्‍द्र एवं राज्‍यों को व्‍यापार एवं वाणिज्‍य को नियंत्रित करने की पर्याप्‍त स्‍वतंत्रता प्रदान करता है; एक आर्थिक भारत के निर्माण की आवश्‍यकता वास्‍तव में राज्‍यों के लिए संप्रभुता के संरक्षण की जरूरतों के कारण कमतर पड़ गई। व्‍यवहार में, इन संवैधानिक प्रावधानों को लेकर न्‍यायालय की व्‍याख्‍या भी आर्थिक एकीकरण के ऊपर राज्‍यों की संप्रभुता की सुरक्षा के पक्ष में है।

इस अध्‍याय में सुझाव दिया गया है कि एक आर्थिक भारत के निर्माण के सवाल पर प्रौद्योगिकी, अर्थशास्‍त्र एवं राजनीति आगे बढ़ती रही है। शायद कानून के लिए यह उपयुक्‍त समय है कि वह इस तेजी से बढते आंतरिक एकीकरण को और अधिक सुगम बनाने में मदद करे।

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