मध्य प्रदेश में मुख्य तकनीकी परीक्षक का सरकारी दफ्तर देखते ही देखते कैसे सेमी गवर्नमेंट हो गया। रिटायरमेंट के बाद इंजीनियरों के पुनर्वास का ठिकाना बनते-बनते यह रिटायर होने वाले आईएएस अफसरों के लिए एक नया ठिया मिल गया है। जबकि एक रिटायर इंजीनियर ने वल्लभ भवन के आला अधिकारियों के साथ बैठकर अपने अपने जैसे रिटायर इंजीनियरों के लिए यह सपना देखा और वह हकीकत में बदलते-बदलते इंजीनियर पर्दे से बाहर हो गए। पढ़िये कार्य गुणवत्ता परिषद विचार से लेकर गठन की पर्दे के पीछे की वल्लभ भवन के गलियारों के भीतर चल रही कहानी जिसमें मुख्य तकनीकी परीक्षक के इंजीनियर प्रमुख संस्था की विशेषज्ञता को दरकिनार कर दिया गया है।
मध्य प्रदेश कार्य गुणवत्ता परिषद का गठन पिछले दिनों हुआ था लेकिन इसका प्रारूप पिछले साल से बनना शुरू हो गया था। अंतिम मुख्य तकनीकी परीक्षक गजाधर सुनैया की फरवरी 2021 में पदस्थापना की गई थी और वे करीब 22 महीने यानी 31 दिसंबर 2023 तक रहे। उनके कार्यकाल समाप्त होने के काफी पहले से ही मध्य प्रदेश कार्य गुणवत्ता परिषद का ताना-बाना बुनना शुरू हो गया था। 2022 के सितंबर आते-आते यह पूर्ण आकार ले चुका था और इसके विचार से लेकर गठन तक के पीछे लोक निर्माण विभाग के प्रमुख अभियंता अखिलेश अग्रवाल की भूमिका अहम रही।
इंजीनियरों के पुनर्वास का ठिकाना आईएएस अफसरों का हुआ
बताया जाता है कि लोक निर्माण विभाग में प्रमुख अभियंता रहे अखिलेश अग्रवाल 31 दिसंबर 2021 में रिटायर हो गए थे और इसके बाद तकनीकी सलाहकार के रूप में सड़क विकास निगम में सेवाएं देने लगे। यहीं रहते हुए उन्होंने अपने पुनर्वास का ठिकाना बनाने का सपना देखा और वल्लभ भवन में अपने संपर्कों का फायदा उठाया। उन्होंने सामान्य प्रशासन विभाग व अन्य संबंधित विभागों के साथ बैठकर मुख्य तकनीकी परीक्षक जैसे सरकारी कार्यालय को समाप्त कर सेमी गवर्नमेंट संस्था का गठन करने की कवायद शुरू की।
कार्य गुणवत्ता परिषद का शुरुआती प्रारूप गठन होते-होते बदला
यहां उल्लेखनीय है कि कार्य गुणवत्ता परिषद को लेकर प्रारंभिक चर्चाओं में अनुभवी इंजीनियरों की टीम के रूप का विचार था। इसका प्रमुख लोक निर्माण विभाग के रिटायर्ड प्रमुख अभियंता स्तर के अधिकारी को बनाए जाने पर चर्चा शुरू हुई जो कई बैठकों में एकराय रही। इस बीच मुख्य तकनीकी परीक्षक कार्यालय के सरकारी कर्मचारियों को अपने भविष्य पर संकट मंडराने की आशंका हुई और वे कोर्ट की शरण में चले गए। मुख्य तकनीकी परीक्षक गजाधर सुनैया के जूनियर होने की वजह से इस दफ्तर को समाप्त कर कार्य गुणवत्ता परिषद के गठन की कवायद में कोई अड़चन नहीं आई। अलबत्ता यह हुआ कि सुनैया के दबाव में उनके स्टाफ के कुछ लोग तो अदालत में जाने से भी बचते नजर आए।
अग्रवाल के कदम पीछे हुए तो आईएएस का पुनर्वास स्थल की चर्चा
बताया जाता है कि मुख्य तकनीकी परीक्षक कार्यालय कर्मचारियों के अदालत में दस्तक देने के बाद अग्रवाल की रुचि कार्य गुणवत्ता परिषद में पुनर्वास में एकदम कम हो गई। इस बीच उनका आरडीसी में कार्यकाल बढ़ गया तो कार्य गुणवत्ता परिषद में नियुक्ति के लिए उनकी दौड़ नहीं बची और फिर यहां से आईएएस अधिकारियों के एक और पुनर्वास स्थल की शुरुआत हुई। मार्च में परिषद में रिटायर्ड आईएएस अधिकारियों को महानिदेशक बनाने का फैसला हुआ और पहले डीजी के रूप में अशोक शाह की नियुक्ति हो गई।
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