अविश्वास प्रस्ताव ने कहीं शिवराज को गुजरात मॉडल से तो नहीं बचा लिया, तलाशे जा रहे फायदे-नुकसान

कांग्रेस द्वारा शिवराज सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के गिरने के बाद अब सत्ता पक्ष और विपक्षी दल कांग्रेस के फायदे-नुकसान को तलाशा जा रहा है। अविश्वास प्रस्ताव से भले ही कांग्रेस को कुछ मिला हो या नहीं लेकिन शिवराज सरकार को अभयदान जरूर मिलने की चर्चा है और यह अभयदान चुनाव पूर्व गुजरात की तरह विधानसभा चुनाव पूर्व बड़े राजनीतिक परिवर्तन की हो सकती थी। अब यह परिवर्तन मंत्रिमंडल फेरबदल के छोटे रूप में सामने आ सकता है। मगर यह अभयदान मध्य प्रदेश की 2023 के राजनीतिक परिदृश्य को कितना अनुकूल कर पाएगी, यह समय ही बताएगा।

गुजरात में लगातार 25 साल की सत्ता के बाद भाजपा ने वहां विधानसभा चुनाव के पहले बड़ा राजनीतिक परिवर्तन किया था जिसके बाद दो तिहाई बहुमत के आंकड़े तक भाजपा पहुंच सकी। मध्य प्रदेश में भी 20 साल में चार बार सत्ता संभालने वाली भाजपा के लिए 2023 के विधानसभा चुनाव आसान नहीं दिखाई दे रहे हैं और गुजरात मॉडल यहां भी लागू होने की अटकलें लगाई जा रही थीं। हालांकि गुजरात की तरह भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में भी बड़ा बदलाव कर चुनाव लड़ा था लेकिन वहां के परिणाम गुजरात से उलट सामने आए।
कांग्रेस का अविश्वास प्रस्ताव शिवराज के लिए विश्वास बना
विधानसभा चुनाव के पहले बड़े परिवर्तन का मध्य प्रदेश में प्रयोग होने के पहले कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव ने सरकार के लिए संजीवनी की काम किया है। ऐसे समय में कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई जब चुनाव में मात्र कुछ महीने ही बचे हैं और उसमें भी आरोपों के लिहाज से बेहद कमजोर अविश्वास प्रस्ताव साबित हुआ। इन आरोपों को शिवराज सरकार ने न केवल अपने काम गिनाकर धो दिया बल्कि आदिवासियों के पेसा एक्ट, कमलनाथ सरकार के समय हुए भ्रष्टाचार, तबादलों में लेन-देन के आरोपों से अपनी बात सामने रख दी। जिस आदिवासी वोट के सहारे 2018 में कांग्रेस ने पांच सीटें ज्यादा हासिल की थीं, उन मतदाताओं के लिए लाए गए पेसा एक्ट पर सीएम शिवराज सिंह चौहान ने अपना फोकस रखकर वक्तव्य दिया और अविश्वास प्रस्ताव में अपने नंबर बढ़ा लिए।
अविश्वास की बैसाखी
अब मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार को कांग्रेस का अविश्वास प्रस्ताव बैसाखी का काम करेगा और बड़े बदलाव को रोकने के लिए शिवराज सरकार इसे अस्त्र के रूप में इस्तेमाल कर सकती है। हालांकि भाजपा में संगठन सर्वोपरि होता है और वह जो तय करता है फिर किसी व्यक्ति विशेष की वहां नहीं चलती है। देखना यह है कि कांग्रेस का अविश्वास प्रस्ताव शिवराज सरकार के लिए कितनी मजबूत बैसाखी बनता है।
कांग्रेस को फायदा कम नुकसान ज्यादा
अविश्वास प्रस्ताव से शिवराज सरकार को जहां विश्वास हासिल हो गया तो वहीं कांग्रेस में गुटीय राजनीति फिर सामने आई। विधानसभा में विपक्ष के सबसे बड़े अस्त्र अविश्वास प्रस्ताव को लाकर कांग्रेस ने हिम्मत तो दिखाई लेकिन सदन के भीतर इसमें पूरी तरह से पार्टी बंटी नजर आई। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ न तो चर्चा में शामिल हुए और न ही उनकी दोनों दिन सदन में उपस्थिति रही। वहीं, नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह की मां के अस्वस्थ हो जाने पर वे भी दूसरे दिन सदन में नहीं पहुंच सके और विधायक अपने-अपने तरह से सत्ता पक्ष को घेरते रहे। इसमें कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी खुद घिर गए क्योंकि वे सदन में विधानसभा के एक प्रश्न के उत्तर के अधूरे दस्तावेज को पेश करके सरकार को घेर रहे थे। अब उनके खिलाफ भाजपा कानूनी लड़ाई शुरू करने के साथ विधानसभा में भी प्रश्न संदर्भ समिति में मामला ले जाने की रणनीति पर काम कर रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Khabar News | MP Breaking News | MP Khel Samachar | Latest News in Hindi Bhopal | Bhopal News In Hindi | Bhopal News Headlines | Bhopal Breaking News | Bhopal Khel Samachar | MP News Today