अंतर्राष्ट्रीय रामलीला उत्सव में सोने के मुकुट, चांदी के सिंहासन पर हुआ श्रीराम राज्याभिषेक

मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग एवं भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद्, नई दिल्ली के सहयोग से श्रीरामकथा के विविध प्रसंगों एकाग्र सात दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय श्रीरामलीला उत्सव का आयोजन रवींद्र भवन मुक्ताकाश मंच तथा परिसर में किया गया था। समापन दिवस पर कार्यक्रम की शुरूआत कलाकारों के स्वागत से की गई।

प्रस्तुति कि शुरूआत श्री सत्संग रामायण ग्रुप, फिजी द्वारा श्रीरामकथा में वन गमन, श्रीराम-लक्ष्मण संवाद, माता सीता हरण, शबरी प्रसंग, अशोक वाटिका में माता सीता-रावण संवाद प्रसंगों की प्रस्तुति दी गई। नाट्कीय रूप में दी गई इस पूरी प्रस्तुति को ‘क्या आप मेरे राम बनोगे’ नाम दिया गया। प्रस्तुति के दौरान कलाकारों ने दोहे-चौपाई का प्रयोग करते हुये रामानंद सागर की रामायण से लिये गये दृश्य को भी मंचित किया। प्रस्तुति दे रहे कलाकार अखिलेश निरंजन प्रसाद ने बताया कि  फिजी में लगभग दो हजार से अधिक श्रीरामलीला मंडली हैं, जो हर सप्ताह हर एक किसी स्थान या लीला के सदस्यों के यहां जाकर रामलीला की प्रस्तुति करते हैं। फिजी में श्रीराम नवमी और नवरात्रि के समय नौ दिवसीय श्रीरामलीला का मंचन किया जाता है। युवाओं को  श्रीरामलीला से जोड़ने के लिये इसमें सामाजिक मुद्दे, नृत्य-नाटिका, संगीत और नाटकीय रूप दिया गया।

श्री आदर्श रामलीला मंडल, सतना (म.प्र) द्वारा लक्ष्मण शक्ति से प्रस्तुति की शुरूआत की गई। अगले दृश्य़ में कलाकारों ने मेघनाथ वध, रावण वध, राज्याभिषेक प्रसंगों की प्रस्तुति दी गई। इस लीला में सोने-चांदी के आभूषण, सोने के मुकुट, चांदी के सिंहासन का प्रयोग कर श्रीराम राज्याभिषेक हुआ। लीला में 1963 में बने मुकुट, स्वर्ण जड़ित पर्दा का प्रयोग किया गया। महंत गुरु प्रसन्नदासजी महराज बताते हैं कि पहले के समय में 20 दिन की श्रीरामलीला का मंचन किया जाता था, लेकिन समय बदलता गया और आज पांच-सात दिवसीय श्रीरामलीला का मंचन किया जाता है। वर्ष 1953 में इस मंडली की स्थापना की। शुरुआती दौर में संसाधनों का अभाव था। कलाकार व मंडली का सामान बैलगाड़ी के जरिए एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाया जाता था। बिजली व्यवस्था लिए गैस सिलेंडर होते थे। संवाद के लिए बैट्री वाले माइक का प्रयोग किया जाता था। 70 से 90 के दशक में इस रामलीला मंडली में 90 से 105 कलाकार हुआ करते थे लेकिन अभी 32 कलाकार प्रस्तुति दे रहे हैं।
वहीं 22 अक्टूबर,2022 को दोपहर प्रस्तुति अंतर्गत श्री रूद्रकांत ठाकुर एवं साथी, सिवनी द्वारा भक्ति गायन में झूमो नाचो खुशियां मनाओ (गणेश वंदना)…, से शुरुआत की। इसके बाद कलाकारों ने चलो देख आएं री राजा राम की नगरिया…, कौशल्या सुत दशरथ नंदन…, सुनाई हो मैया…, सब दुनिया से आ गए प्रेमी…, हनुमत  वीरा रे…, गीत एवं भजनों की प्रस्तुति दी। मंच पर गायन में श्री रूद्रकांत ठाकुर, सह-गायन में श्री जुगलकिशोर पांडे, सुश्री प्रीति राजपूज, सुश्री रीतू चौधरी, की-बोर्ड श्री राजेश चौहान, अक्टोपेड पर श्री राजा निखारे, ढोलक पर श्री आशीष विश्वकर्मा और श्री रूपेश कुमार ने संगत की।  
अगले क्रम में सुश्री श्वेता अग्रवाल एवं साथी रीवा द्वारा अहिराई नृत्य प्रस्तुति दी गई। यह नृत्य यादव समुदाय की सांस्कृतिक पहचान है, विशेष रूप से शादी-विवाह के अवसर पर बिरहा गायन, दोहे के साथ महिला और पुरुष दोनों समवेत रूप से नृत्य करते हैं।  
श्रीहनुमान कथा की चौपाइयों और दोहों को 42 चित्रों में समेटाउत्सव अंतर्गत पहली बार श्री हनुमान चालीसा आधारित “संकटमोचन” चित्र प्रदर्शनी का संयोजन किया गया है। श्रीहनुमान के महान चरित को पहली बार चित्रात्मक रूप से अभिव्यक्त करने का कार्य मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा किया गया है। चित्र सृजन का कार्य ख्यात चित्रकार श्री सुनील विश्वकर्मा-वाराणसी के द्वारा किया गया है। प्रदर्शनी में उनके द्वारा बनाये 42 चित्रों को प्रदर्शित किया गया है। श्री विश्वकर्मा की विशिष्टता भारतीय आध्यात्मिक चरितों को पूर्ण शुचिता के साथ अभिव्यक्त करने की रही है।
185 से अधिक शिल्पी

दीपावली के अवसर पर दीपोत्सव मेला अंतर्गत 185 से अधिक शिल्पी विविध माध्यमों के शिल्प एवं वस्त्र, टेराकोटा, बांस, लोहा, पीतल, तांबा एवं अन्य धातु से बने उत्पादों का प्रदर्शन और विक्रय किया गया। शिल्प मेले में मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, गुजरात, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, कश्मीर, दिल्ली एवं अन्य राज्यों के बुनकर और शिल्पकारों ने हिस्सा लिया। सभी शिल्पी अपने-अपने विशिष्ठ शिल्पों के साथ इस मेले में पधारे हैं। शिल्पों में प्रमुख रूप से दीपों के त्योहार में उपयोग की जाने वाली सामग्री जैसे दीपक, हैंगिंग लाइट्स, हैंगिंग डेकोरेटिव आइटम्स इत्यादि हैं। साथ ही बनारसी साड़ी, चंदेरी साड़ी, भोपाली बटुये, जरी-जरदोजी, मिट्टी के खिलौने, गोंड-भील एवं मधुबनी पेंटिंग, साज-सज्जा आइटम, मेटल आयटम, बांस से बने शिल्प, सिरेमिक आर्ट इत्यादि भी खास रहे।
स्वाद- व्यंजन मेला

उत्सव अंतर्गत स्वाद- व्यंजन मेला में बघेली व्यंजन में पानी वाला बरा-चटनी, रसाज, बुंदेली व्यंजन में गोरस, बिजोरा, गुलगुला एवं राजस्थानी व्यंजन में जोधपुरी प्याज की कचौरी, मिर्ची बड़ा, छोले टिक्की, बिहारी व्यंजन में लिट्टी-चोखा, मराठी व्यंजन एवं सिंधी तथा भील एवं गोण्ड जनजातीय समुदाय के व्यंजन भी शामिल रहे।

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