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अंग्रेज चाहते थे मुस्लिम शासित पाकिस्तान हो और हिंदू शासित भारत: सुब्रमण्यम स्वामी
समान नागरिक संहिता को व्यापक संदर्भ में देखा जाना चाहिए। हमारे संविधान की धारा-44 में सरकार के लिए जो नीति निर्देशक तथ्य हैं, उनमें भी सभी बातों का जिक्र है। हमारे संविधान में राज्य भाषा को लेकर भी स्थिति स्पष्ट की गई है। अंग्रेजों ने कभी भी भारत को धर्मनिरपेक्ष बनाने के लिए नहीं कहा था। अंग्रेज चाहते थे कि मुस्लिम शासित एक पाकिस्तान हो और हिंदू शासित एक भारत हो।
यह बात धार में स्व. दत्ताजी उननगांवकर न्यास द्वारा आयोजित व्याख्यान माला में बुधवार की रात को मुख्य वक्ता के रूप में राज्यसभा सांसद डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने कही। 600 राजाओं में से 500 राजाओं ने भारत में विलयता स्वीकार करी। कश्मीर का राजा अपने आपको एक अलग राज्य बनाने की चाह में था। जिसने बाद में भारत की शरण ली। जवाहरलाल नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र में एक अर्जी दाखिल की। उसी के बाद स्थिति बदली। कांग्रेस पार्टी ने इस देश को धर्मनिरपेक्ष बनाया है न कि अंग्रेजों ने। उन्होंने कहा कि एक सिविल कोर्ट होना चाहिए। मुस्लिम लोग अपराध के मामले में तो भारतीय दंड संहिता को ही मानते हैं। वे शरीयत के दंड को नहीं मानते। इस तरह की कई दिक्कतें हैं।
राम मंदिर मूलभूत अधिकार का विषय
डॉ. स्वामी ने कहा कि राम मंदिर का मुद्दा हमारे मूलभूत अधिकार का विषय है। राम मंदिर को लेकर कोर्ट में मामला चल रहा है लेकिन मैंने अपने स्तर पर सुप्रीम कोर्ट में पूजा के अधिकार के लिए याचिका लगाई है। इसकी सुनवाई जुलाई में होगी। प्रतिदिन सुनवाई होगी, जिससे कि हमें निश्चित रूप से अधिकार मिलेगा। धारा-25 में यह मूलभूत अधिकार संविधान में वर्णित है। भगवान राम के अयोध्या स्थित एक झोपड़ीनुमा स्थान पर आज हम ही जा पाते हैं। उन्होंने कहा कि कोर्ट जुलाई में सुनवाई करेगी। इसमें राम मंदिर को लेकर पूरा जोर लगाऊंगा। दिन-प्रतिदिन सुनवाई होगी। मैंने न्यायालय से कहा है कि इस मामले में अलग से फैसला दिया जाए। चल रही याचिकाओं से अलग। उन्होंने कहा कि मस्जिद केवल नमाज अदा करने का एक सुविधाजनक स्थान है। नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है।
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