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‘गमक’ अन्तर्गत नाटक ‘नेपथ्य राग’ का मंचन
संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित गमक श्रृंखला की सप्ताहांत प्रस्तुतियों के अंतर्गत रवींद्र भवन में आज नट निमाड़ कला समूह, खंडवा के कलाकारों द्वारा श्री विजय सोनी के निर्देशन में सुश्री मीरा कान्त द्वारा लिखित नाटक ‘नेपथ्य राग’ का मंचन हुआ|
‘नेपथ्य राग’ उस रागिनी की कथा है जो युग-युगान्तर से समाजरूपी रंगमंच के केन्द्र में आने के लिए संघर्षरत है। इसी संघर्ष को इतिहास और पौराणिक आख्यान की देहरी पर प्रज्वलित एक दीपशिखा के माध्यम से नाटक प्रस्तुत करता है, जिसे नाम मिला है खना।
नाटक का आरम्भ आधुनिक परिवेश में कथावाचन शैली में होता है जहाँ एक कामकाजी युवती मेधा कार्यालय में अपने पुरुष सहकर्मियों से सहयोग न मिल पाने के कारण दुःखी है। माँ और मेधा के सम्भाषण के सूत्र में खना यानी एक प्रतिभावान, अध्यवसायी स्त्री के दर्द की कथा को पिरोया गया है।
नाटक का पृष्ठाधार है चौथी-पाँचवीं शताब्दी की उज्जयिनी, जब वहाँ मालवगणनायक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का शासन था। इसी समय एक ग्राम वाला खना की ज्ञान-प्राप्ति की तृषा उसे साहित्य व कला के धाम उज्जयिनी ले आती है। अपनी विलक्षण बुद्धि एवं एकनिष्ठ जिज्ञासा के कारण उसे प्रख्यात ज्योतिषाचार्य वराह मिहिर का शिष्यत्व प्राप्त होता है। शीघ्र ही परिस्थितियाँ उसे वराह मिहिर की पुत्रवधू बना देती हैं|
वराह मिहिर विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक हैं। उनका राजसभा से सम्बन्ध खना देवी की बढ़ती ज्ञान-कीर्ति को वहाँ तक ले जाता है। विक्रमादित्य ज्ञान के आलोक से दीप्त इस व्यक्तित्व की ओर बहुत तेज़ी से आकृष्ट होते है। वे खना देवी को अपनी राजसभा में एक सभासद के रूप में अलंकृत करना चाहते हैं। यहीं पुरुषप्रधान समाज के प्रतिनिधि नवरत्न इस प्रयास को अपने कुटिल चातुर्य से ध्वस्त कर देते हैं| इसी ज़मीन पर समय-समय पर कहीं-कहीं फूटते हैं पौधे दर्द के, चुभन के इस एहसास कि खना शताब्दियों पहले भी नेपथ्य में थी और आज भी सही मायने में नेपथ्य में ही है।
श्री विजय सोनी-विगत तीस वर्षों से हिन्दी रंगकर्म के क्षेत्र में सक्रिय हैं। आप पच्चीस नाटकों के साथ कुछ हिंदी फिल्मों में अभिनय एवं कई बड़े नाटकों का निर्देशन कर चुके हैं|
आप इन्दौर आकाशवाणी एवं दूरदर्शन भोपाल से “बी” ग्रेड ड्रामा आर्टिस्ट, आपको संस्कृति विभाग भारत शासन द्वारा लोक नाट्य गम्मत के लिये जूनियर फेलोशिप प्राप्त है| श्री सोनी को हिन्दी नाटक जिस लाहौर नहीं वैख्या के लिये वर्ष 2005 और खूबसूरत बहू के लिये वर्ष 2006 में निर्देशन के लिए महाराष्ट्र शासन द्वारा द्वितीय पुरस्कार प्रदान किया गया।
लेखन- मीरा कांत का एवं मंच पर- साक्षी सोनी, प्रशांत रामस्नेही, विजय सोनी, संजय भट्ट, अर्पिता दुबे, हिमांशु दुबे, श्रुति सोनी, नेहा आगरकर, राजश्री शर्मा, अंकित शुक्ला, राज्दीप्सिंह तोमर, अनुराग मालवीय, अमन जैन, गुप्तेश्वर सोनी ने अभिनय किया|
मंच परे- संगीत वीरेन्द्र जानी, विपुल कुलकर्णी, कृष्णा चौरे एवं वासु चौरे का, गायन सोनाली ढाक्से का, प्रकाश संयोजन मैनुल सिध्दीकी, रूप सज्जा शंकरलाल सेन, मंच सामग्री समूह द्वारा संयोजन- शरद जैन का था|
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