प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वकांक्षी जन औषधि परियोजना का मध्य प्रदेश में मखौल उड़ाया गया और जब इसकी एफआईआर दर्ज हो गई तो पुलिस ने भी मामले की जांच गंभीरता से नहीं की। जब मामला रफा-दफा करने के लिए कोर्ट तक पहुंचा तो अदालत ने ऐसा आदेश दिया है कि अब पुलिस की विवेचना पर सवाल खड़े होने लगे हैं। जन औषधि संघ मप्र नाम की संस्था के पंजीयन, उसकी गतिविधियों पर इस रिपोर्ट में फोकस किया जा रहा है, पढ़िये क्या है मामला।
मध्य प्रदेश में 21 जून 2018 में मप्र जन औषधि संघ नाम की संस्था का पंजीयन हुआ था। इसके पंजीयन के बाद से ही इसकी गतिविधियां संदेह के दायरे में थी क्योंकि इसने न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जन औषधि परियोजना से मिलता-जुलता नाम लिया था बल्कि उसने कई भारतीय प्रतीक चिन्हों का भी उपयोग किया था। संस्था के वेबसाइट पर लोगों को प्रभावित करने के लिए मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश, मंत्रियों की तस्वीरें लगा ली थीं।
ऐसे मामला पहुंचा पुलिस तक
यह मामला भारत सरकार की संस्था ब्यूरो ऑफ फार्मास्यूटिकल पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स ऑफ इंडिया (बीपीपीआई) के महाप्रबंधक धीरज शर्मा ने भोपाल आकर संस्था की जांच पड़ताल की। इसमें संस्था की वेबसाइट के स्क्रीनशॉट लिए और कई अन्य साक्ष्य जुटाकर भोपाल पुलिस को संस्था के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आवेदन दिया। शिकायत के आधार पर बाग सेवनिया थाना भोपाल पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 420, राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह अधिनियम की धारा 3, 4 व 7, आईटी एक्ट में एफआईआर दर्ज की गई। इसमें संस्था के खिलाफ मामला दर्ज हुआ।
पुलिस ने टालमटोल जांच कर खारिजी रिपोर्ट अदालत में भेजी
जन औषधि संघ मप्र के खिलाफ दर्ज एफआईआर में पुलिस ने कथित रूप से जांच कर मामला नहीं बनने की अनुशंसा करते हुए अदालत में खारिजी रिपोर्ट 12 जून 2020 को भेजी। मगर अदालत ने खारिजी रिपोर्ट देखी तो उसमें पुलिस की विवेचना को कमजोर पाया और उन्होंने बीपीपीआई द्वारा प्रस्तुत जन औषधि संघ मप्र की वेबसाइट के स्क्रीनशॉट को महत्वपूर्ण साक्ष्य माना। अदालत ने प्रकरण को भोपाल की बागसेवनिया पुलिस को दोबारा जांच के लिए लौटा दिया है।
दिल्ली के हजारी कोर्ट ने भी लगाया प्रतिबंध
दिल्ली के हजारी कोर्ट में बीपीपीआई ने जन औषधि संघ के खिलाफ आवेदन लगाया था जिसमें प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना के ट्रेडमार्क और मध्य प्रदेश राज्य सहकारी जन औषधि विपण संघ मर्यादित के नाम के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने का निवेदन किया गया था। इस पर कोर्ट ने आदेश कर दिए हैं और जन औषधि संघ को उपरोक्त नाम के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिए हैं।
सागर में जन औषधि संघ ने की वसूली, एफआईआर
सरकारी संस्थाओं के नाम के उपयोग करने वाले जन औषधि संघ पर सागर एफआईआर दर्ज हो चुकी है जिसमें एजेंट बनाने के नाम पर वसूली के आरोप लगे हैं। इसमें संघ के अध्यक्ष जागृत प्रभात मिश्रा, शैलेष तिवारी, दुर्गेश गौतम और लोकेंद्र सेंगर के नाम हैं। इन लोगों पर गरिमा शांडिल्य ने स्टोर खोलने के नाम पर तीन लाख की वसूली करने का आरोप लगाया।
जन औषधि संघ में रिटायर्ड सहकारिता अफसर का रोल
जन औषधि संघ में सहकारिता के रिटायर्ड ज्वाइंट कमिश्नर अरविंद सेंगर का रोल पर्दे के पीछे रहा है। उन्होंने अपने बेटे को आगे रखकर उसमें अपनी भूमिका निभाई। बेटा लोकेंद्र सेंगर इस संस्था में पार्टनर था। संस्था के अध्यक्ष जागृत प्रभात मिश्रा हैं।
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