मध्य प्रदेश में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के आगे कुछ सालों में दिल्ली से आने वाले नेता बौने साबित हो रहे हैं।राहुल गांधी के करीबी और यूथ कांग्रेस, एनएसयूआई, दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभालने वाले नेताओं की पटरी मध्य प्रदेश में दिग्गज नेताओं के साथ नहीं बैठ पाई जिसके चलते छह साल में रणदीप सुरजेवाला चौथे प्रदेश प्रभारी हैं। पढ़िये रिपोर्ट।
मध्य प्रदेश कांग्रेस के लिए अब तक एआईसीसी ने छह साल के भीतर चार प्रदेश प्रभारी दिए हैं। राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले गुजरात के दीपक बावरिया, छात्र राजनीति से लेकर युवा राजनीति में झंडे गाड़ने वाले महाराष्ट्र के मुकुल वासनिक, दिल्ली की राजनीति में दिग्गज नेता शीला दीक्षित को नाकों चने चबा देने वाले जयप्रकाश अग्रवाल और अब हरियाणा में ओमप्रकाश चौटाला सरीखे नेता को मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए हराने वाले तेज तर्रार प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला को यह जिम्मेदारी मिली है। मगर छह साल के इतिहास में कांग्रेस के जिन दिग्गजों को यहां भेजा गया था, उनकी मध्य प्रदेश के दिग्गज नेताओं से पटरी नहीं बैठ पाई और कांग्रेस को एकबार फिर विधानसभा चुनाव के ठीक पहले मझधार में छोड़कर जयप्रकाश अग्रवाल ने वापस अपनी दिल्ली का रुख कर लिया है। आखिर क्या वजह है कि मध्य प्रदेश में धुरंधर भी नाकाम साबित हो रहे हैं। यह एक सोचने वाला सवाल इन दिनों कांग्रेस के नेताओं-कार्यकर्ताओं के मन में कौंध रहा है।
दीपक बाबरियाः अरुण यादव के प्रदेश अध्यक्ष कार्यकाल में मोहन प्रकाश का स्थान लेने वाले प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया थे। वे गुजरात के नेता हैं जिन्हें राहुल गांधी का करीबी माना जाता है। यहां उन्होंने मंडलम-सेक्टर को बनाने के लिए काफी काम किया था और कमलनाथ के प्रदेश अध्य़क्ष की कमान संभालने के बाद भी वे प्रदेश प्रभारी रहे। मगर उनकी पूरे कार्यकाल में कुछ बड़े नेताओं से पटरी नहीं बैठी और रीवा में तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उनके साथ दुर्व्यवहार तक कर दिया था। इसके पीछे तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के समर्थकों का नाम लिया गया था। इसी तरह अरुण यादव के साथ भी उनके रिश्ते अच्छे नहीं रहे। कमलनाथ सरकार गिरने के बाद उन्हें हटा दिया गया।
मुकुल वासनिकः वासनिक कांग्रेस की राजनीति में भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन से ही सक्रिय रहे और वे एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष व यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। 1984 में वे पहली बार लोकसभा चुनाव जीतकर आए लेकिन एक बार जीतने व एक बार हारने का क्रम बना रहा। अभी वे राज्यसभा सदस्य हैं। उन्हें जब 2020 में प्रदेश का प्रभारी बनाया गया था तो कोविड का समय था। वे यदाकदा ही मध्य प्रदेश के दौरे पर आए और दो साल में ऊब गए। उन्होंने प्रदेश प्रभारी के कार्य से मुक्त होने की कोशिशें शुरू कीं तो सितंबर 2022 में उनके बदल दिया गया।
जयप्रकाश अग्रवालः अग्रवाल का राजनीतिक जीवन पांच दशक का है। वे ऐसे दबंग नेता हैं कि उन्होंने दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को उस समय कई बार राजनीतिक रूप से पटखनी दी। दिल्ली के डिप्टी मेयर से लेकर चार लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने तो अभी राज्यसभा सदस्य हैं। उनका मन भी एक साल से कम समय में ही भर गया क्योंकि मध्य प्रदेश के दिग्गजों से उनकी पटरी सही ढंग से बैठ नहीं पाई। वे भी मध्य प्रदेश से जाने के लिए कोशिशें करने लगे थे। गुरुवार को उनके मन की इच्छा पूरी हुई और प्रभार से मुक्त कर दिए गए।
रणदीप सुरजेवालाः सुरजेवाला एक राजनीतिक परिवार से आते हैं और उनके पिता हरियाणा की कांग्रेस राजनीति में एक अहम नेता रहे। विधायक, सांसद रहे। सुरजेवाल कम उम्र में राजनीति आए और उनकी हरियाणा में ऐसी पैठ है कि उन्होंने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए ओमप्रकाश चौटाला को हराया। चौटाले उनसे एक बार नहीं दो बार हारे। सुरजेवाला हरियाणा के अलावा दिल्ली में कांग्रेस की राजनीति में दबंग नेता और प्रखर प्रवक्ता माने जाते हैं। हाल ही में उनका भाजपा को मत देने वाले मतदाताओं को राक्षस करार दिए जाने का बयान चर्चा में है। देखना यह है कि वे मध्यप्रदेश में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के साथ कैसे पटरी बैठा पाते हैं।
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