मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोपियों को संरक्षण देने का निलंबित पूर्व ओएसडी संजय जैन के बाद दूसरा मामला भोपाल शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई महाविद्यालय के प्राचार्य मुकेश दीक्षित का सामने आया है। दीक्षित के खिलाफ शासन ने जो जांच कमेटी बनाई, उसकी जांच पर सवाल खड़े हो गए हैं क्योंकि उसने तीन दिन पहले जांच शुरू की तो गवाहों के बयान लिए। बयान आरोपी दीक्षित के कक्ष में हुए क्योंकि उनका शासन ने जांच दौरान तबादला तक नहीं किया और गवाहों से सवाल-जवाब दीक्षित के सामने ही हुए जिससे जांच पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। पढ़िये सवालों के दायरे में आई जांच पर रिपोर्ट।
शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय के विवादास्पद प्राचार्य प्रो.मुकेश दीक्षित की शिकायतों की जांच के लिए प्रदेश शासन ने पांच सदस्यीय समिति गठित की थी। समिति ने दो महीने बाद हाल में 17-18 मई को प्रकरण की जांच की। जांच में प्राचार्य ने अपने बचाव में सारे तथ्य एकत्रित कर लिए थे। इतना ही नहीं प्राचार्य के कक्ष में कॉलेज के कर्मचारियों ने भी बयान दर्ज कराए। गौरतलब है कि किसी अधिकारी या कर्मचारी के खिलाफ जांच कमेटी बनाए जाने के बाद आरोपी की पदस्थापना को बदला जाता है जिससे जांच पर किसी तरह का प्रभाव नहीं पड़े।
कमेटी बनाई आरोपों के घेरे में फंसे प्राचार्य की पदस्थापना नहीं बदली
शासन ने प्रो. मुकेश दीक्षित के खिलाफ जांच कमेटी तो बना दी लेकिन उनकी पदस्थापना अब तक नहीं बदली है। इससे यह हुआ कि आरोपों के घेरे में फंसे प्राचार्य दीक्षित ने साक्ष्यों को खुर्दबुर्द करते हुए कई रिकॉर्ड प्रभावित कर दिए हैं। दूसरी तरफ अब जब जांच शुरू हो गई है तो मामले में गवाही देने वाले लोगों को प्रभावित करने के आरोप भी लग रहे हैं। जांच कमेटी जब कॉलेज में पहुंची तो उसे साक्ष्य नहीं मिलने तथा गवाहों के बयानों में विशेष तथ्य नहीं मिले तो वह वापस लौट गई।
विवादों से लंबा नाता रहा है दीक्षित का
प्रोफेसर मुकेश दीक्षित के विरुद्ध शिकायतों का सिलसिला लंबे समय से है। एक बार पहले उन्हें एमएलबी के प्रिंसिपल पद से हटाया जा चुका है। दूसरी बार किसी तरह वे पुनः प्राचार्य पद पाने में कामयाब हो गए। दीक्षित ने 2013 में तत्कालीन एक महिला प्रोफेसर के साथ अश्लील व्यवहार किया था, उक्त महिला प्रोफेसर ने तब प्रोफ़ेसर दीक्षित के विरुद्ध यौन प्रताड़ना की शिकायत की थी। जिसकी जांच हुई और मामला ठंडे बस्ते में चला गया था। वे वर्ष 2021 में महाविद्यालय में पदस्थ किए गए थे तो उस दौरान कोरोना लॉकडाउन में महाविद्यालय की रद्दी और कबाड़ को बिना शासकीय प्रक्रिया को अपनाए ठिकाने लगा दिया था। कोराना काल में दीक्षित पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के नाम पर प्राध्यापकों से एक-एक हजार रुपए चंदा लेकर निजी खाते में रखने और संगोष्ठी भी नहीं कराने के आरोप हैं। दीक्षित के विरुद्ध सीहोर और सिलवानी पदस्थापना के दौरान भी शिकायत हो चुकी हैं।
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