पंडित प्रदीप मिश्रा से गुरु पूर्णिमा पर पांच लाख ने गुरु दीक्षा ली। सोमवार देर रात तक दीक्षा कार्यक्रम चला। सीहोर जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में त्रिदिवसीय गुरु पूर्णिमा महोत्सव का समापन सोमवार की रात हो गया। पंडित मिश्रा के प्रवचनों के बाद गुरू दीक्षा कार्यक्रम शुरू हुआ जो देर रात तक चला। अनुयायियों ने पंडित मिश्रा के चरणों की पूजा की और गुरू मंत्र ग्रहण किया। पढ़िये कुबरेश्वर धाम के गुरू पूर्णिमा महोत्सव पर रिपोर्ट।
बताया जाता है कि कुबरेश्वर धाम में तीन दिन के गुरू पूर्णिमा महोत्सव के अंतिम दो दिन में पांच लाख से ज्यादा अनुयायियों ने पंडित प्रदीप मिश्रा से गुरू दीक्षा ली। सोमवार की सुबह प्रवचन के दौरान भागवत भूषण पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि संकट के समय गुरु नहीं गुरु मंत्र काम आता है, भरी सभा में जब द्रौपदी का चीरहरण किया जा रहा था, तो उस समय सभी चुप-चाप बैठे हुए थे, लेकिन जब द्रौपदी ने अपने गुरु की ओर देखा तो उन्होंने ऊपर की इशारा किया और द्रौपदी ने भगवान कृष्ण का ध्यान किया तो भगवान ने उसकी लाज रखी। इसी तरह संकट जब भी आए तो अपने गुरु पर भरोसा रखो, वहीं आपको विषम परिस्थितियों में बाहर निकालेगा।
मरने के बाद चार चीजें मनुष्य के साथ जाती हैं
मरने के बाद भी चार चीजें हमारे साथ जाती हैं। पुण्य, यदि हमने कोई पुण्य किया है तो वह हमें स्वर्ग के द्वार तक ले जाएगा।
पाप, यदि हमारे द्वारा कोई पाप हुआ है तो वह हमें नर्क के द्वार तक ले जाएगा। पाप को समय रहते भोग लेना चाहिए। यदि पाप का प्रायश्चित नहीं किया तो यह बाद में हजारों गुना बढ़ जाएगा। इसलिए इसे जल्दी ही भोग लेना चाहिए और यदि पुण्य किया है तो उसे भविष्य के लिए भूल जाएं क्योंकि बाद में यह हजारों गुना बढ़कर लौटेगा और अधिक पुण्य लाभ मिलेगा। कहां भी गया है कि पाप हो या पुण्य दोनों ही समय रहते हैं। चक्रवृद्धि ब्याज की तरह बढ़ते रहते हैं।
कर्म, कर्म को मानव जीवन में प्रधान कहा है क्योंकि कर्म से ही हमारा प्रारब्ध बनता है और उसी अनुसार हमारे भविष्य का निर्माण होता है। आज जो भी मिल रहा है वह पूर्व में किए गए कर्मों का ही परिणाम है।
गुरु मंत्र, गुरु मंत्र याने जो गुरु हमें शिक्षा देते हैं उसी को गुरु मंत्र कहते हैं और गुरु मंत्र हमे मोक्ष के द्वार तक पहुंचाते हैं।
गुरु और भगवान पर आस्था और भरोसा जरूरी
भागवत भूषण पंडित मिश्रा ने कहा कि मृत्यु लोक में जन्म लिया है तो आप पर उंगली उठाने वाले हजारों मिलेंगे, लेकिन हमेशा ध्यान रखना कि अपने कर्म में लगे रहना। जब लोगों ने भगवान को नहीं छोड़ा तो हम तो इंसान हैं। इसलिए सदा ध्यान रखना कि छल प्रपंच में कभी मत फंसना। अगर कहीं फंसना तो देवाधिदेव के चरणों में फसना। लोग कुछ भी कहे लाख अंगुली उठाएं यदि आप भक्ति स्मरण, चित्र वृत्ति से भगवान का स्मरण करेंगे तो यही जीवन की सार्थकता है। हमेशा सत्यमेव जियो। विश्वास की मूलता होती है तो परमात्मा मिलता जरूर है। मृत्यु लोक में आए हैं तो भगवान को भजना ही पड़ेगा और मृत्यु लोक के देवाधिदेव भगवान शंकर हैं और गुरु भी हमारी रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते है।
पंडित प्रदीप मिश्रा ने दी दीक्षा
त्रिदिवसीय अपने प्रवचन के अंतिम दिन भागवत भूषण पंडित मिश्रा ने बताया कि शहर में गीता बाई पाराशर रही जो जगह-जगह भोजन बनाने का कार्य करती थीं। उन्होंने श्रीमद भागवत कथा का संकल्प लिया था पर पैसा नहीं था। उन्होंने कथा करवाई, उस समय न भागवत थी न ही धोती कुर्ता। उन्होंने कहा कि पहले आप गुरु दीक्षा लीजिए, गुरु दीक्षा लेने हम इंदौर गए, गोवर्धन नाथ मंदिर। वहां से दीक्षा ली। मेरे गुरुजी ने ही मुझे धोती पहनना सिखाई और उन्होंने छोटी सी पोथी मेरे हाथ में दे दी। आज गुरु दीक्षा का आशीर्वाद है कि मुझे आप सभी का स्नेह और प्रेम मिल रहा है और हम सभी भगवान शिव की महिमा का वर्णन कर रहे है।
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