एक दौर वह भी था जब दीपावली मिट्टी से बने दीयों की थी। घी और तेल से दीेये जलाए जाते थे। तेजी से प्रचलन में आई मोमबत्ती और विद्युत झालरों के प्रयोग ने जहां कुम्हारों के हाथ से रोजगार छीन गया। वहीं घी तेल के दीये न जलने के कारण बरसात में पैदा होने वाले कीट-पतंगे भी नहीं मर पाते। नतीजा यह है कि हम परेशान होते हैं। मिट्टी के दीये पर्यावरण के लिए भी नुकसानदायक नहीं होते थे। हमारी इस प्राचीन परंपरा को हिंदू उत्सव समिति पुन: जीवंत करने जा रही है। इसके तहत् हम इस दिपावली पर मिट्टी का दीये घी या तेल में जरूर जलाएं।
दीपावाली के पावन पर्व पर शहरवासियों से मिट्टी के दीये खरीदने की अपील भी अग्रसोच सोशल फाउंडेशन द्वारा की गई है। इस अभियान में जिले के सभी संगठनों से जुड़ कर लोगों से मिट्टी दिये प्रज्वलित करने संकल्प दिलाया जाएगा साथ ही स्कूली छात्र- छात्राओं को भी संकल्प दिलाया जाएगा कि मिट्टी के दिये जरूर इस दिपावली पर जलाएं।
मिट्टी के दीप प्रज्वलित करने से पर्यावरण का होता है संरक्षण अग्रसोच सोशल फाउंडेशन के अध्यक्ष अनीता आशीष गुप्ता ने सभी नागरिकगणों से मिट्टी के दियों को उपयोग करने हेतु आग्रह करते हुए बताया कि घी व तेल से जलने वाले मिट्टी के दीये से बारिश के मौसम में निकलने वाले हानिकारक कीट-पतंगे मर जाते हैं। इससे बहुत कम मात्रा में कार्बन डाई आक्साइड गैस बनती है, जिसे पेड़ पौधे भी ग्रहण करते हैं। जितना ग्रहण करते हैं, उतना आक्सीजन हम सभी को देते हैं। पारंपरिक मिट्टी के दीपक से पर्यावरण शुद्ध रहता है। बीमारियां नहीं होती हैं। दिपावली में मिट्टी का दीया जलाने से पर्यावरण का संरक्षण के साथ ही कुम्हारों का रोगजार भी बढ़ेगा। कोरेाना संक्रमण में कुम्हार के व्यवसाय पर भी असर पड़ा है। मिट्टी के दीये जलाने से कई परिवारों में खुशियों के दीप चल जाएंगे।
सबको करना होगा प्रयास
अग्रसोच सोशल फाउंडेशन के अध्यक्ष अनीता आशीष गुप्ता ने कहा कि इस दिपावली में अधिक से अधिक मिट्टी का दीया जल सके, उसको लेकर हम सबको प्रयास करना होगा। तभी यह संभव हो सकता है। हमें अपने आस-पास के लोगों को बताना होगा कि इस बार मिट्टी का दिया जरूर जलाएं।
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