भील जनजातीय गायन और कुमाउनी लोकनृत्य की प्रस्तुतियाँ

मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में गायन, वादन एवं नृत्य गतिविधियों पर केंद्रित श्रृंखला‘उत्तराधिकार’ में आज ‘भील जनजातीय गायन’ और ‘कुमाउनी लोकनृत्य’ की प्रस्तुतियाँ संग्रहालय सभागार में हुईं|

कार्यक्रम की शुरुआत इन्दर सिंह(धार) ने अपने साथी कलाकारों के साथ ‘भील जनजातीय गायन’ से की|कलाकारों ने गायन प्रस्तुति की शुरुआत जन्म गीत ‘माय मि जनम लियो’ प्रस्तुत कर की| इसके बाद कलाकारों ने अपने गायन कौशल से बच्चे के जन्म पर केंद्रित गीत ‘खेल-खेल रे मारा नाना पोरया’ और’मिझे तारी माय तुझे मारु लाल’ गीत प्रस्तुत कर सभागार में मौजूद श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया| इसके पश्चात कलाकारों ने विवाह पर केंद्रित गीत ‘खड़मारी खोदण जावा’ अपने कलात्मक गायन कौशल से प्रस्तुत किया| कलाकारों ने विवाह पर केंद्रित गीत ‘क्वारी गाय को गोबर’ और ‘निलोर माण्डव निलोर तोरण’ प्रस्तुत करते हुए अपनी गायन प्रस्तुति को विराम दिया| प्रस्तुति के दौरान गायन में चम्पाबाई, ममताबाई, निर्मलबाई,शर्मिलाबाई, छिताबाई, जमनाबाई, सजनबाई और लीलाबाई ने, थाली पर शेर सिंह ने और मांदल पर थावा सिंह ने सहयोग किया| इन्दर सिंह लम्बे समय से गायन-वादन और नृत्य के क्षेत्र में सक्रीय हैं| इन्दर सिंह ने भील जनजातीय गायन और नृत्यों की कई प्रस्तुतियाँ देश के विभिन्न कला मंचों पर दी हैं|

भील जनजातीय गायन के बाद प्रकाश सिंह विष्ट(अल्मोड़ा) ने अपने साथी कलाकारों के साथ कुमाउनी लोकनृत्य प्रस्तुत किया| कलाकारों ने नृत्य प्रस्तुति की शुरुआत ‘छपेली नृत्य’ प्रस्तुत कर की| छपेली नृत्य कुमाऊँ का पारम्परिक नृत्य है, इस नृत्य का आयोजन प्रायः ही मेलों, शादी-विवाहों और मांगलिक कार्यक्रमों में किया जाता है| यह प्रेम पूर्ण भावुक्ता की अभिव्यक्ति की सुन्दर लोक शैली है| इस नृत्य में प्रेमी-प्रेमिका विषयक वार्तालाप में उन्मुक्त नृत्य प्रेम भावना एवं उल्लास के विदित रंग होते हैं| इस नृत्य को करने वाले युवक-युवतियाँ प्रायः ही जोड़े बनाकर नृत्य करते हैं| छपेली नृत्य के बाद कलाकारों ने अपने कलाकत्मक नृत्य कौशल से ‘पनियारी नृत्य’ प्रस्तुत कर सभागार में मौजूद दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया| यह नृत्य पानी पर केंद्रित होता है, इसी कारण से इसे पनियारी नृत्य कहा जाता है| इस नृत्य में हंसी-मजाक और नोक-झोंक देखने को मिलती है| पनियारी नृत्य के पश्चात कलाकारों ने ‘घसियारी नृत्य’ प्रस्तुत किया| इस नृत्य में उत्तराखंड की सुंदरता का वर्णन किया गया| प्रकाश सिंह विष्ट ने अपने साथी कलाकारों के साथ ‘चांचरी नृत्य’प्रस्तुत करते हुए अपनी नृत्य प्रस्तुति को विराम दिया| चांचरी नृत्य का आयोजन मुख्यतः मेलों, पर्वों-उत्सवों या किसी मांगलिक अवसर पर किया जाता है| इस नृत्य की विषय वस्तु धार्मिक आराधना व प्रकृति प्रेम से जुड़ी होती है| इस नृत्य के दौरान गीत को विलम्बित लेय में गाया जाता है, हुड़का इसका प्रमुख वाद्य होता है|     

नृत्य प्रस्तुति के दौरान मंच पर नरेंद्र प्रसाद, त्रिलोक कुमार, पारस विष्ट, कल्याण सिंह बोरा, चंद्रशेखर, कुंदन सिंह कनवाल, नेहा सिजवाली, प्रियंका बोनाल, अंजलि, कंचन कृष्णा, सौम्या, बबीता बर्गली, सुहाना और सुजाता लटवाल आदि ने अपने नृत्य कौशल से सभागार में मौजूद दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया|  प्रस्तुति के दौरान हारमोनियम पर महिपाल मेहता ने, ढोलक पर कमलेश कुमार ने, बाँसुरी पर संतोष कुमार ने, हुड़का पर नवीन चंद्र ने, मुरचंग पर प्रकाश विष्ट ने सहयोग किया| प्रकाश सिंह विष्ट को कई प्रतिष्ठित सम्मानों और पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है| प्रकाश सिंह विष्ट ने देश के विभिन्न कला मंचों पर कुमाउनी लोकनृत्य की कई मोहक प्रस्तुतियाँ दी हैं|

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