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आपकी आवाज, हमारी कलम

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जंगल की रक्षा करने वाले वन विभाग ने वृक्षारोपण के लिए लाए गए दस हजार पौधे जंगल में फेंके, ऐसे सामने आया मामला

मध्य प्रदेश में जंगल की रक्षा करने वाले वन विभाग ने एकबार जंगल की हरियाली को बढ़ाने के लिए लाए गए करीब दस हजार पौधों जंगल में फेंकने का काम किया है। जूनियर अधिकारी की रिपोर्ट के बाद भी वृक्षारोपण में बरती गई इस लापरवाही पर आज तक कोई एक्शन नहीं हुआ है। जानें कहां का है मामला और किस अधिकारी ने भेजी रिपोर्ट।

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में मौजूदा 192 विधायक फिर मैदान में हैं, जाने कौन अरबपति-कौन करोड़पति

मध्य प्रदेश विधानसभा के मौजूदा 230 विधायकों में से 192 फिर से चुनाव मैदान में उतरे हैं और इनमें से ज्यादातर करोड़पति हैं। आठ विधायक तो ऐसे हैं जो अरबपति हैं तो शिवराज कैबिनेट की एक महिला सदस्य उषा ठाकुर अभी तक लखपति क्लब में हैं। 18 साल मुख्यमंत्री कुर्सी पर बैठे शिवराज सिंह चौहान ने अपनी और अपनी पत्नी की संपत्ति आठ करोड़ रुपए बताई है जिसमें पांच साल में 96 लाख की बढ़ोतरी हुई है तो पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की संपत्ति 134 करोड़ रुपए हो गई है और उनकी पांच साल में नौ करोड़ रुपए की वृद्धि हुई है। पढ़िये रिपोर्ट।

मध्य प्रदेश के नेता अपने परिजनों की कर रहे ब्रांडिंग

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में नेता अपने परिवारजनों की ब्रांडिंग में ज्यादा लगे हैं जो पिछले अन्य चुनाव में कम दिखाई देता था। पति के लिए पत्नी, पत्नी के लिए पति तो पुत्र के लिए पिता और पिता के लिए पुत्र ही नहीं नजदीकी रिश्तेदारों के लिए भी नेता पूरी ताकत के साथ जुटे हैं। पढ़िये रिपोर्ट।

दिवाली पर सोनी सब के कलाकारों के विचार

रोशनी का त्योहार दिवाली अंधेरे पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञानता पर ज्ञान की विजय को दर्शाता है। इस दिन, देश भर में लोग अपने घरों को रोशनी और दीयों से सजाते हैं, रंगोली बनाते हैं और उपहार लेते-देते हैं। सोनी सब के शो के लोकप्रिय कलाकारों ने अपने दिवाली समारोह, सेट पर अनुभवों और बहुत कुछ के बारे में खुलकर बात की।

अखबारों में 12 साल बाद भी लागू नहीं हुआ मजीठिया वेजबोर्ड, बढ़ा वेतन मांगने पर पत्रकार हो रहे प्रताड़ित

चुनाव नजदीक आते ही राजनैतिक पार्टियां सभी वर्गों के साथ ही पत्रकारों के लिए भी लुभावने वादे कर रही हैं,जिसमें पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करना और वृद्धावस्था पेंशन देने जैसे वादे शामिल हैं,लेकिन पत्रकारों की आर्थिक सुरक्षा के लिए सबसे जरूरी मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू कराने के मामले में सभी दल मौन हैं। सन 2011 में केन्द्र सरकार द्वारा मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशें लागू की गई थीं, जिसमें पत्रकारों को सम्मानजनक वेतन एवं भत्ते देने का प्रावधान था। पिछले 12 साल से पत्रकार एवं अन्य समाचार पत्र कर्मचारी मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को लागू कराने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

भाजपा-कांग्रेस दोनों प्रमुख दलों के बागी कर सकते है कई सीटों पर उलटफेर, बगावत करने वालों की पसंद सपा-बसपा

मध्यप्रदेश के चुनावी मैदान में अब सारे मोहरे खुलकर सामने आ गए हैं। बगावत से जूझ रही पार्टियों की मान-मनोव्वल कितनी असरदार और कितनी बेअसर रही है यह सारे पत्ते खुल गए हैं। बागियों के मामले में भी कांग्रेस और बीजेपी के बीच में कड़ी टक्कर हो रही है। किसके ज्यादा किसके कम, यह तय करना मुश्किल सा हो रहा है। पढ़िये बागियों पर वरिष्ठ पत्रकार गणेश पांडेय की विशेष रिपोर्ट।

दोनों दलों के बागी कई सीटों पर उलटफेर करते दिखाई पड़ रहे हैं। टिकट वितरण में गलती करने के मामले में दोनों दल एक-दूसरे को पछाड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं। बगावत विपक्ष को ज्यादा नुकसान करती है. सत्ता विरोधी मत अगर एकतरफा मुख्य विपक्ष के खाते में चला जाता है तो सत्तापक्ष को चुनाव में नुकसान होता है। जब भी सत्ताविरोधी मतों का विभाजन होता है, तब तीसरे दलों और बगावती-निर्दलीय उम्मीदवारों के बीच में विभाजित सत्ता विरोधी मत सत्ताधारी दल को ही लाभ पहुंचाते हैं।
सपा-बसपा-आप व बागियों की सेंध से कांग्रेस को नुकसान ज्यादा
सपा-बसपा-आप AIMIM और बागी निर्दलीयों द्वारा जो सेंध लगाई जाएगी उसका नुकसान स्वाभाविक रूप से कांग्रेस को ज्यादा और बीजेपी को कम होने की संभावना है। बीजेपी के चुनावी रथ के सारथी सपा-बसपा-आप और कांग्रेस के बागी-निर्दलीय बनते दिखाई पड़ रहे हैं। राज्य के कई इलाकों में सपा का वजूद चुनावी नतीजे को उलटफेर करने में सक्षम दिखाई देता है। पहले भी सपा एक-दो सीट जीतती रही है। इस चुनाव में भी सपा ऐसी स्थिति में है जो कम से कम दो सीटों पर जीतने का दावा कर सकती है। कई सीटों पर कांग्रेस को नुकसान भी सपा के कारण हो सकता है।
बसपा, बीजेपी के लिए ट्रंप कार्ड जैसे
जहां तक बसपा का सवाल है, इसके प्रत्याशी बीजेपी के ट्रंप कार्ड के रूप में दिखाई पड़ रहे हैं। बीजेपी के चाणक्य केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी इसी ओर इशारा किया था कि सपा और बसपा के प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में मौजूदगी के लिए पार्टी को सहयोगात्मक रुख रखना चाहिए। ग्वालियर-चंबल और विंध्य अंचल में बीएसपी ताकत के साथ चुनाव लड़ रही है।
भाजपा-कांग्रेस के बागी की पसंद बसपा
बीएसपी के अधिकांश प्रत्याशी भाजपा या कांग्रेस के बागी ही हैं जिस जाति समूह में बसपा का आधार बना हुआ है वह मध्यप्रदेश में कांग्रेस की समर्थक मानी जाती है। कई सीटों पर बसपा ने ऐसी ही जातियों के प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं जो कांग्रेस के प्रत्याशियों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। बसपा वैसे भी राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के गठबंधन में शामिल नहीं है। मध्यप्रदेश का चुनाव यूपी चुनाव का आभास दे रहा है। बसपा के कारण सपा और आरएलडी गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा था।
राजनीति के लिए बीमारी बन गई बगावत
पार्टियों में बगावत और विद्रोह चुनाव की अनिवार्य बीमारी बन गई है। कोई भी दल इससे अछूता नहीं है। एमपी चुनाव में इस बार बगावत और आंतरिक विद्रोह दोनों दलों को परेशान कर रहा है। प्रत्याशियों के चयन में गड़बड़ियों के कारण बहुत बड़ी संख्या में विधानसभा सीटों पर पार्टी से ज्यादा प्रत्याशी महत्वपूर्ण हो गया है। प्रत्याशियों के चेहरे पर जनादेश की मानसिकता बढ़ती जा रही है। टिकट वितरण में ज्यादा गलती करने वाले दल को इसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ेगा। ग्वालियर-चंबल अंचल जहां बीजेपी निराशा और कांग्रेस उत्साह से भरी थी वहां परिस्थितियां एकदम से बदलती हुई दिखाई पड़ रही हैं। इस अंचल में टिकट वितरण में कांग्रेस की ओर से बेशुमार गलतियां की गई हैं। बागी उम्मीदवारों की सबसे ज्यादा पकड़ इसी इलाके में देखी जा रही है और इसके कारण नतीजे में उलफेर भी होता दिखाई पड़ रहा है।
बगावत का इतिहास से सबक नहीं
बगावत और विद्रोह के पुराने इतिहास पर नजर डाली जाए तो इसका सर्वाधिक असर कांग्रेस के भविष्य पर ही पड़ता रहा है। कमलनाथ को अपनी सरकार बगावत के कारण ही गंवानी पड़ी। कांग्रेस की दिग्विजय सरकार को भारी बहुमत से हराने वाली पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने जब पार्टी से बगावत की तब उनके साथ एक भी विधायक नहीं गया था। इसके विपरीत कांग्रेस में बगावत के समय ज्योतिरादित्य के साथ 22 विधायक पार्टी छोड़ गए थे। जिन राजनीतिक दलों में संगठन की धारा कमजोर होती है, व्यक्तिगत नेताओं की राजनीति हावी होती है वहां बगावत ज्यादा असरकारी होती है। एमपी में कांग्रेस संगठन तो वरिष्ठ नेताओं के गुटों के समूह की तरह कॉरपोरेट ऑफिस के रूप में काम करता दिखाई पड़ता है। राजनीतिक संगठन के मामले में मध्यप्रदेश का भाजपा संगठन विशेष स्थान रखता है। यद्यपि बीजेपी के संगठन में भी सत्ता की खामियां बढ़ती जा रही हैं।
बीजेपी संगटनात्मक तौर पर मजबूत
इसके बावजूद प्रदेश में कांग्रेस की तुलना में बीजेपी का संगठन काफी मजबूत है। संगठन की संरचना का सदुपयोग कर भाजपा अपनी बगावत को नियंत्रित करने में काफी हद तक सफल होती भी दिख रही है, जो बागी संगठन की बात दरकिनार कर चुनाव मैदान में डटे हुए हैं उनको भी या तो मना लिया जाएगा और नहीं तो चुनाव पर उनके असर को संगठन की शक्ति से सीमित करने की कवायद की जा रही है। चुनावी तैयारी और प्रचार अभियान में भी बातें ज्यादा काम कम के शिकार दल और नेता खुशफहमी और गलतफहमी के बीच झूल रहे हैं। जनता खामोश है. मुख्य दलों के जनाधार बराबरी पर हैं, जिस दल के प्रत्याशियों के चेहरे क्षेत्र में मैनेजमेंट करने में सफल होंगे वही दल सरकार बनाएगा। पार्टी-नेताओं का अति आत्मविश्वास प्रत्याशियों की ताकत के बदले आफत बन गया है।

विधानसभा चुनाव: सामाजिक समीकरण पर भाजपा दांव, मीणा समाज अध्यक्ष का साथ लिया, दस सीटों पर निशाना

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में दो सप्ताह का समय भी नहीं बचा है और भाजपा ने अब सामाजिक समीकरणों पर दांव लगाना शुरू कर दिया है। मीणा समाज की दस सीटों पर निशाना साधने के लिए समाज के अध्य़क्ष को साथ ले लिया है जिन्होंने कुछ महीने पहले कांग्रेस के लिए समाज का बड़ा सम्मेलन किया था। पढ़िये रिपोर्ट।

बागी हो गए नेताओं अब हो रहे इस्तीफे, कुछ मामलों में पार्टी कर रही निष्कासन, गुड्डू ने फिर छोड़ी कांग्रेस

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में नाम वापसी के कुछ मिनिट पहले तक पार्टियों ने बागियों को मनाने के प्रयास किये जिनमें से ज्यादातर मान भी गए। मगर जो बागी सबक सिखाना चाहते हैं, वे अभी भी डटे हैं और पार्टियों पर आरोप लगाकर इस्तीफे दे रहे हैं। ऐसे कुछ नेताओं को पार्टियां निष्कासन का रास्ता दिखाने लगी हैं। पढ़िये रिपोर्ट।

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव की 42 सीटों पर दिलचस्प मुकाबला होने की संभावना, देखिए एक नजर में

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में नामांकन पर्चा दाखिल होने के बाद आज नाम वापसी का अंतिम दिन है जिसमें अभी तक 59 ने नाम वापस ले लिए हैं। मौजूदा परिस्थितियों में हमने 42 ऐसी सीटें पाई हैं जहां भाजपा-कांग्रेस के टिकट वितरण की वजह से मुकाबले दिलचस्प हो गए हैं। इनके अलावा भी कुछ ऐसी सीटें हैं जहां दोनों दलों के असंतुष्टों की वजह से अधिकृत प्रत्याशियों को मुश्किलें आ रही हैं लेकिन 42 सीटें वे हैं जहां पार्टियों को बेहद परेशानियां झेलना पड़ सकती हैं। पढ़िये रिपोर्ट।

निकटतम रिश्तेदार एक ही सीट आमने सामने तो दंपति अलग-अलग पार्टी से अलग-अलग सीट से उतरे

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में अब तक निकटतम रिश्तेदारों के बीच एक ही सीट पर चुनावी टक्कर दिखाई दे रही थी लेकिन एक दंपति दो अलग-अलग सीटों से चुनाव मैदान में उतरने जा रहे हैं। यही नहीं ये पति-पत्नी एक ही पार्टी से नहीं बल्कि दो अलग-अलग पार्टी से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। पढ़िये रिपोर्ट।

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