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अपराध एक सजा अलग-अलग, अफसरों का निलंबन तो सिपाहियों की बर्खास्तगी
मध्य प्रदेश पुलिस के पिछले दिनों कुछ ऐसे कारनामे सामने आए हैं जिनसे वर्दी दागदार हुई है। मगर वर्दी पर दाग लगाने वालों के साथ भी सजा देने वालों ने अलग-अलग मापदंड अपनाए हैं। तीन मामलों में दो अधिकारी और दो सिपाहियों के एक जैसे अपराध के मामले सामने आ चुके हैं जिनमें सिपाहियों को 48 घंटे के भीतर सेवा से बर्खास्त कर दिया गया लेकिन अधिकारियों को तमाम साक्ष्य के बावजूद निलंबन जैसी कार्रवाई की गई है। यह रिपोर्ट सिपाहियों के पक्ष में नहीं लेकिन एक जैसे अपराधिक कृत्य पर नौकरशाही के दो अलग-अलग आदेशों से पर्दा उठाने की कोशिश है।
मध्य प्रदेश पुलिस में पिछले करीब एक पखवाड़े में तीन ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जिनसे जनमानस में एकबार फिर पुलिस की छवि पर दाग लगा है। विवादित संपत्तियों को कब्जा दिलाने के आरोप पुलिस पर लगते रहे हैं लेकिन ऐसा एक मामला राजधानी भोपाल में हाल में ही सामने आया। इसमें एक दुकान के विवादित मामले को निपटाने में राज्य पुलिस सेवा के अधिकारी और सहायक आयुक्त पराग खरे का सीसीटीवी फुटेज वायरल हुआ जिसमें वे अपने दोस्त की दुकान के किरायेदार को चमका रहे थे। इसी दौरान लोकायुक्त विशेष पुलिस स्थापना के कार्यवाहक डीएसपी योगेश कुरचानिया पर गंजबासौदा के नागरिक बैंक के मुख्य कार्यपालन अधिकारी को फर्जी नोटिस से ब्लैकमेल करने का आरोप लगा जिसमें कुरचानिया के भी वहां मौजूद होने की बात सामने आई थी। यह भी गंभीर तथ्य है कि कुरचानिया का लोकायुक्त विशेष स्थापना पुलिस से स्थानांतरण हो चुका था और वे घटना के दिन तक रिलीव नहीं हुए थे। इस घटना के बाद उन्हें कार्यमुक्त किया गया। दोनों अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया।
दो दिन में सिपाही की सेवाएं समाप्त
वहीं, पराग खरे और योगेश कुरचानिया जैसे ही अपराध में शामिल भोपाल पुलिस के दो सिपाही रोहित व देवेंद्र का मामला जब सामने आया तो स्थानीय अधिकारियों ने तुरत-फुरत एक्शन लिया। उनकी पहचान होने के बाद एफआईआर कराई गई और दूसरे दिन ही उनकी सेवा समाप्ति करते हुए बर्खास्तगी आदेश जारी कर दिए गए।
निलंबित अधिकारियों को मौका नौकरी बचाने का
ज्ञात रहे कि सरकारी नौकरी में निलंबन को सजा नहीं माना जाता है क्योंकि निलंबन अवधि में न केवल जीवन निर्वहन के लिए भत्ता दिया जाता है बल्कि उन्हें नौकरी बचाने का मौका भी मिलता है। प्रशासनिक निलंबन आदेश के खिलाफ वरिष्ठ अधिकारी के सामने अपील कर सकते हैं या फिर सीधे अदालत भी जा सकते हैं। उस दौरान घटना के गवाहों को अपने पक्ष में करने का पूरा मौका मिलता है। ऐसे में पराग खरे और योगेश कुरचानिया को अड़ीबाजी-ब्लैकमेलिंग जैसे अपराध के आरोपी होने के बाद भी घटना से जुड़े पक्षों को धमका या प्रलोभन देकर अपने पक्ष में करने का पूरा मौका मिलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
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