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तकनीकी में हिंदी के उपयोग की कामयाबी तब होगी जब दादी गूगल से पूछेगी काय गूगल टेम का हो गओ
पब्लिक रिलेशंस सोसायटी भोपाल द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी की सेवा और प्रचार-प्रसार के लिए पूरे विश्व में कार्य कर रहे अप्रवासी भारतीय साहित्यकारों के विश्व रंग आयोजन में रविवार को कई तकनीकी जानकारों व साहित्यकारों ने संबोधन किया और उनका सम्मान किया गया। अमेरिका से एक कंप्यूटर कंपनी में काम करने वाले मनीष गुप्ता ने कहा कि तकनीकी में हिंदी का उपयोग तब कामयाब माना जाएगा जब कटनी में बैठी कोई दादी गूगल से पूछेगी क्या गूगल टेम का हो गओ।
भोपाल के मिंटो हाल में आयोजित इस कार्यक्रम में देश-विदेश के कई साहित्यकारों का शनिवार और रविवार को सम्मान किया गया। अमेरिका से आए मनीष गुप्ता भोपाल के रहने वाले हैं और दस सालों से अमेरिका में काम कर रहे हैं। उन्होंने आयोजन में अपने संबोधन में इंटरनेट के लोकतांत्रिकीकरण के फायदे और इंटरनेट में आए डाटा विस्फोट के बारे में बताए। उन्होंने कहा कि इसी के माध्यम से इंग्लिश के एकछत्र राज्य को किस तरह की चुनौती दी जा सकती है। मनीष ने आर्टिफ़िकल इंटेलीजैंस, मशीन लर्निंग, डीप लर्निंग के बारे में बताया तथा इस क्षेत्र में हो रहे क्रांतिकारी प्रयासों के बारे में जानकारी दी। उन्होन बताया की किस तरह ऑस्ट्रेलिया के एआरसी सेंटर ऑफ एक्सीलैंस, डायनामिक्स ऑफ लेंग्वेजे ने मशीन लर्निंग का इस्तेमाल कर वहां की क्षेत्रीय भाषाओं को बचाने की मुहिम चलाई है। इसी तरह भारत के युवाओं को भी इंटरनेट में हिंदी सामग्री को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। अपने दोस्तों को देवनागरी लिपि में व्हाट्सअप मैसेज भेजें। इससे इसका डाटा और मशीन लर्निंग मिलकर भाषा को मदद करेगी। उन्होंने इस युग को चित्रित किया जिसमें गूगल से टाइम पूछने के लिए ओके गूगल, व्हाट इज टाइम नाऊ के स्थान पर भारत के कटनी या ऐसे किसी शहर में बैठी कोई दादी अपने फोन पर गूगल से पूछ सके कि काय गूगल टेम का हो गओ।
What a, nice thoughts to make sure Hindi language gets its own importance.