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नर्मदा पुत्र भक्त अमृतलाल वेगड़ का देहांत

नर्मदा पुत्र भक्त अमृतलाल वेगड़ का देहांत

माँ नर्मदा के महान पुत्र, भक्त अमृतलाल वेगड़ का देहांत शुक्रवार को सुबह हो गया। उनकी अंतिम यात्रा निवास 1836 राइट टाउन जबलपुर, अरुण डेरी के पास से ग्वारीघाट मुक्तिधाम पहुंची जहां उनका अंतिम विदाई दी गई। अमृतला वेगड़ ने कई बार नर्मदा परिक्रमा की। अमृतलाल वेगड़ ने माँ नर्मदाजी परिक्रमा पर सौन्‍दर्य की नदी नर्मदा, अमृतस्‍य नर्मदा, तीरे-तीरे नर्मदा, नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो, द नर्मदा रिवर ऑफ ब्‍यूटी और द नर्मदा रिवर ऑफ जाए. किताबें भी लिखीं।1928 में जबलपुर (म.प्र.) में जन्मे और 1950 के दशक में शान्ति निकेतन, कोलकाता से कला की पढ़ाई कर चुके अमृतलाल वेगड़ ने नर्मदा के किनारे 4000 कि.मी. से ज्यादा की पदयात्रा की है और इस यात्रा पर हिंदी में उनकी तीन महत्त्वपूर्ण पुस्तकें, – ‘सौंदर्य की नदी नर्मदा’, ‘अमृतस्य नर्मदा’, ‘तीरे-तीरे नर्मदा’ के अलावा सैकड़ों चित्र, स्केच और कोलाज बनाए हैं। इन किताबों के गुजराती, मराठी, अंग्रेज़ी अनुवाद भी उपलब्ध हैं। मूल गुजराती में लिखे नर्मदा यात्रा वृत्तांत पर उन्हें 2004 का साहित्य अकादेमी पुरस्कार भी मिल चुका है।

कथावाचक जैसी रोचक शैली में नर्मदा परिक्रमा और शान्ति निकेतन के अपने अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने कई रोचक और मार्मिक संस्मरण सुनाए। नर्मदा के प्रति अपने प्रेम का श्रेय अपने कला गुरु नंदलाल बोस को देते हुए उन्होंने बताया कि मेरे गुरु ने मुझे आर्शीवाद देते हुए कहा था, ‘‘जीवन में सफल मत होना, यह बेहद आसान है, तुम अपने जीवन को सार्थक बनाना।’’ यह बात मैंने अपने सीने पर लिख ली। नर्मदा को समझने-समझाने की मैंने ईमानदार कोशिश की है और मेरी कामना है कि सर्वस्व दूसरों पर लुटाती ऐसी ही कोई नदी हमारे सीनों में बह सके तो नष्ट होती हमारी सभ्यता/संस्कृति शायद बच सके। नगरों में सभ्यता तो है लेकिन संस्कृति गाँव और गरीबों में ही थोड़ी बहुत बची रह गई है।
ज्ञात हो कि श्री वेगड़ ने 50 वर्श की अवस्था में (1977) पहली बार नर्मदा परिक्रमा पर निकले थे और 82 वर्श कीआयु में भी इसकों जारी रखे हुए हैं। उन्होंने कहा भी कि 33 वर्षों से मैं नर्मदा की ‘छड़ी मुबारक’ लेकर घूम रहा हूँ और जब तक जीवित हूँ ऐसे ही घूमता रहूँगा…नर्मदे हर …नर्मदे हर ….नर्मदे हर .।

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